क्यों करती हो तुम
बार-बार बस एक ही सवाल
आख़िर क्या मायने है
तुम्हारी जिन्दगी के
तुम्हारी जिन्दगी के
क्यों मिला है तुम्हे ये जन्म
समझाया है मैंने हमेशा तुम को
बनाने वाले ने सब को एक सा बनाया
दिए सब को दो पैर- दो हाथ
एक दिल , दो आंख और एक दिमाग
दी आंखें, देखो दुनिया को
दिया दिमाग, समझो इस को
दिया दिल , करो साहस रखो विश्वास
दिए पैर, हिम्मत कर खडे होने को
और हाथ, कुछ कर गुजरने को
फिर क्यों पूछते हो यह बार-बार
नही तो तुम मजलूम
नही हो तुम लाचार
उठो, अगर नही मिलते मायने जिन्दगी के
करो कुछ नया सर्जन
और दो खुद के मायने
और दो खुद के मायने
जिन्दगी को अपनी तुम ...
--- अमित ३०/०८/०७
2 comments:
क्या बात है अमित भाई!! बहुत खूब!!
बहुत खूब बन्धु!
बहुत बड़िया लिखा है!
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