दुखता है अब बहुत दिल मेरा
होता है बेचैन दिल मेरा
होता है बेचैन दिल मेरा
जुबान से नही होते बयां
अब मेरे ज़ज्बात
और आँखें करती
हर ज़ज्बात बयां हमारा
मैं तो रहा हमेशा ही
महफिलों में भी अकेला
इस अकेलेपन में भी
किसी ने ना हमे कभी छोडा
हम तो किसी से कुछ ना बोले
लोगो ने हर कदम
हम को किया रुसवा
हम को किया रुसवा
हमारा दिल तोडा
और दिया है हमे
ज़ज्बातों से खेलने का इलज़ाम
मेरी जुबां हमेशा चुप रही
दिल का लहू मगर चुप ना रहा
और ज़ोर ज़ोर पुकारा
देखों कभी गरेबान में अपने
मेरे दिल का ही नही
ना जाने कितनों का
ख़ून-ए- दिल है जो
ले रहा है नाम तुम्हारा ...
--- अमित २१/०८/07
2 comments:
बहुत सुंदर रचना… लयबद्ध भाव वाह…।
शब्द दे दो भावनाओं को
जब भी दिल दुखे.
वे शब्द ले लेंगे काफी सारा भार
आपके दिल से.
बचेगा जो बाकी मन में,
निश्चित होगा वह हलका
पहले से
-- शास्त्री जे सी फिलिप
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