Tuesday, August 21, 2007

यह सच है मगर ...

तुम मानोगे नही
यह सच है मगर
दिल कभी तुम्हारा
दुखाया नही हमने जानकर
कुछ समय का साथ ऐसा था
सब कुछ लुटा, कुछ पाया नही
चाहा है तुम्हे तह-ए-दिल से
काम मगर ये कुछ आया नही
हमने हमेशा तुम्हारी खुशियाँ ही चाही
और ना जाने ऐसा क्यों हुआ
हुई कुछ गलत फेहमिया
और ख़ुशी के बदले दुःख हम दोनो ने पाया
तुम को लगता पत्थर हूँ मैं
देखा तुमने कभी नही
इस पत्थर दिल इन्सान ने
सीने में मॉम सा एक दिल पाया है
आप ने किया गुस्सा हम पर
बुरा बहुत हम को बताया
तोड़ रिश्ता हमसे कहीँ और जोड़ लिया
हम तो आज भी तनहा रहते है
और सब से कहते है
कभी किसी का दिल ना दुखाना ...
--- अमित २१/०८/०७

6 comments:

Anonymous said...

bahut khoob bandhu!

Anonymous said...

badiya expression hai.

galat fahmi bahut khatarnak hoti hai aur doosri poem me, apne sahi hi likha hai,ki kuch dino me hi kyon hum samjhte hai, ki ham doosre ko samjh gaye, aur uska jor-shor se dava bhi karte hain!

bahut aacha likha hai.

Udan Tashtari said...

कविता तो बढ़िया बन गई. आगे आपकी टैग लाईन है कि मार्गदर्शन करते रहें तो सुनें:

-ब्लॉगर्स का तो यही हाल होना है. भाई, यह सब बाद में भी होता रहेगा, अभी उसके साथ मिल बैठ कर गलतफहमियाँ दूर कर लें तो ही सार्थक बात बनेगी.

चिट्ठाकारी को तो आप दलदल ही समझें, हर नई पोस्ट के साथ और गहरे धंसते जायेंगे, फिर निकलना मुश्किल है. अभी आप किनारे पर हैं, कोशिश करके शायद निकल भी जायें. सारे जरुरी काम निपटा लिजिये फिर आईये. ये कहीं भागा थोड़े ही न जा रहा है.

जो आपको बीच दलदल में नाचते से प्रतीत हो रहे हैं, वो दरअसल प्रसन्नतावश नहीं नाच रहे. कुछ तो निकलने के प्रयास में तांडव कर रहे हैं और कुछ जो हार चुके हैं वो नाच नाच कर दूसरों को अटकाने की फिराक में हैं. उनका जीवन सूत्र है:

हम तो डूबे हैं सनम, तुमको भी ले डूबेंगे.

बाकि आप जैसा उचित समझें. हम तो गरदन तक अटकें हैं. कोई बताने वाला नहीं था उस जमाने में. अब तो हमारे जैसे साधु आ गये हैं तो जनहित में ऐसे सूत्र देते रह्ते हैं.

Reetesh Gupta said...

सरल शब्दों में अपनी भावनाओं को खूबसूरती से कहा है आपने .....बधाई

परमजीत सिहँ बाली said...

bahut badhiyaa!

Divine India said...

सार्थक भावाव्यक्ति…। बधाई स्वीकार करें।