मिले वो बाद अर्से के आज
हुई फिर उनसे
बाते कुछ अनकही सी
लब उनके सिले थे
लब हमारे सिले थे
खामोशी से आंखों-आंखों मे
बातों के वो दौर चले थे
देती थी सुनाई
उनके दिल की धड़कन
छूती थी मुझको
उनके साँसों ही गर्माहट
होती थी साफ महसूस
हरारत उनके बदन की
झलकती थी बेताबी चेहरे पर
उनके चंचल मन की
आपस में उलझी उँगलियाँ
हुई फिर उनसे
बाते कुछ अनकही सी
लब उनके सिले थे
लब हमारे सिले थे
खामोशी से आंखों-आंखों मे
बातों के वो दौर चले थे
देती थी सुनाई
उनके दिल की धड़कन
छूती थी मुझको
उनके साँसों ही गर्माहट
होती थी साफ महसूस
हरारत उनके बदन की
झलकती थी बेताबी चेहरे पर
उनके चंचल मन की
आपस में उलझी उँगलियाँ
दिखाती थी उथल-पुथल
कुछ ख्यालों की
जो चल रही थी
अंतर-मन में कहीँ
वो हिज़र भी क्या था खुदा
जो था उन्होने
उपर से नीचे तक ओढा हुआ
एक दूजे की आंखों में
दोनो यों डूबे थे
कुछ ख़बर ना थी
कब दिन का दामन छुटा
और शब ने कलाई थाम ली
और शब ने कलाई थाम ली
अब तो वक़्त-ए-रुखसत था
जाने कैसे इन पलकों ने
अश्कों की बाढं
आंखों के साहिल पर थाम ली ...
--- अमित ११/०८/०७
1 comment:
बहुत अच्छा
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