बोलना जब आता नही था
मेरा हर इशारा समझती थी वो,
चलना जब आता नही था
ऊँगली थाम चलाती थी वो,
रहता था जब मैं बीमार
रात रात भर कहॉ सोती थी वो,
रात रात भर कहॉ सोती थी वो,
ज्ञान का पहला पाठ पढाने वाली थी वो,
जागा किया करता था जब पढने को
मेरा पूरा ख़्याल रखती थी वो,
जब भी कभी चोट लगी मुझको
ना जाने कितने प्यार से संभालती थी वो,
याद है मुझे जब गया था दूर काम को मैं
खुश थी मगर जुदाई के अंशु छुपाती थी वो,
हुई थी जब मेरी शादी
ख़ुशी से हर तरफ नाचती थी वो,
मैं बस सोचता भर ही हूँ
मेरे मन की हर बात जान जाती है वो,
तुम पूछते हो कैसी है वो
और मैं सोचता हूँ
और मैं सोचता हूँ
शब्दों मैं कैसे तुम को बता दूं
मेरी "माँ" है वो बस इश्वेर के जैसी है वो...
--- अमित ०७/०८/०७
2 comments:
bahut khoob bandhu!
पहली बार आपकी रचनायें पढ़ने का सौभाग्य मिला। बहुत अच्छा लिखते हैं आप। खासकर आपकी यह कविता तो मुझे बेहद पसंद आई। बाकी सभी रचनाओं को इत्मीनान से पढ़ने के बाद उन पर चर्चा कभी फिर।
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