Sunday, August 5, 2007

तुझ से मिलना ...

देखा था जब आते तुझे
मंदिर में पहली बार
रह गया था, एक सकते में मैं
थी तो तुम एक दम सादा
किया था मगर इस सादगी ने
मुझे आकर्षित बहुत ज्यादा था
आकर तेरा वो झुक कर, मंदिर का दर छूना
कर के दुपट्टा सिर पर , वो आरती लेना
की थी जब तुने पूजा में बंद आँखें
लगता था चहरे की आभा से
लगी हो जैसे पुकार तेरी , सीधी इश्वेर से जाके
ना जाने क्यों लगा था मुझे
सफल होगया मेरा जीवन उस दिन वहाँ आके
और फिर अपनी माँ के साथ मेरी करीब आना
लिये आंखों में हया, वो मुझसे बाते करना
ज्यों ज्यों मैं तुम से बाते किया जाता था
बस तेरी सादगी पर ही मैं आसक्त हुआ जाता था
तेरी कही एक एक बात तेरे मन का आईना था
सच इश्वेर ने बड़ी सादगी से तुम्हे बनाया था
मेरी किस्मत ने आज खटखटाया मेरा दरवाजा था
और हम बने जीवन साथी, यह दोनो दिलों का फैसला करवाया था ...
--- अमित ०५/०८/०७

2 comments:

Pankaj Oudhia said...

सच्चे मन से लिखी कविता। सुन्दर रचना।

Reetesh Gupta said...

अच्छा लगा पड़कर ....बधाई