हर तरफ रौशनी फैली थी
खुशियों के चारो और मेले थे
दिन ईद , रात दिवाली थी
कभी मेरे आगे , कभी पीछे
कभी दाये , या बाये
हर लम्हा,
वो मेरे साथ थी ...
फिर तेज एक आंधी आई
बिखर सी गई खुशियाँ सारी
और छाई अंधियारी ...
अब ओझल वो हो गई
कल हर लम्हा जो साथ थी ,
याद मुझे आता हैं ,
कहा था उसने
वो मेरी " परछाई" थी ...
--- अमित ०५/०५/२०१०
2 comments:
वाह! बहुत खूब!
waah bahut sundar
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