दौर मंदी का अब गया
और बाज़ार गर्म हो गया
अब तक जो बंद थे 'पर'
खुलने अब वो लगे ,
छोड़ कर पुरानी शाखे
आशियाना 'पंछी' नया लगे बनाने !
देख देख ये सब ,
मालिक कमज़ोर शाखों के लगे घबराने
ना हो वीरान, अपना आशियाना
पैतरे इसलिए नये नये लगे लगाने !
कल तक जो लगते थे खुद पर बोझ
आँगन के फूल नज़र अब वो आने लगे !
प्रलोभन रोज अब नये दिए जाते है ,
राई के भी अब तो , पहाड़ बना दिए जाते है !
हर छोटी खबर भी, मसाला साथ लिए होती है
और गई हर शाम 'पत्री' एक नई मिली होती है !
लाभ आज से आप को ये दिया जाता है,
वेतन में इजाफा किया इतना जाता है ,
आश्वासन लोगो को ये दिए अब जाते है !
देख देख इनकी ये सब चाल
'पंछी' भी अब हो गये श्याने है
उड़ना तो एक दिन फुर्र ही है
बस भागते इस 'भूत' के
लंगोट और हथियाने है ...
(आर्थिक मंदी का दौर ख़तम होने पर कंपनी और कर्मचारी के बीच की खीचा तानी पर )
--- अमित (२०/०४/२०१०)
1 comment:
सही चित्र खींचा है रस्सा कसी का.
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