चाँद नहीं हूँ मैं
जो रोशन हो,
उधार की रौशनी से !
सूरज हूँ मैं
जलाया हैं खुद को ,
किया तव रोशन जहाँ !
तो क्या हुआ ,
जो शीतलता नहीं मुझ में
ताप और उर्जा हैं
भर पूर मुझ में !
ताप सिखाता स्यमं
और उर्जा अंधरे से लड़ना !
शीतलता में रह कर
उन्नति नहीं आती ,
जब तक न तपे सोना
चमक उसमें भी नहीं आती !
येँ चमकता रूप मेरा
नहीं हैं कोई अहंकार
हैं येँ चमक संतुष्टि की
दी मैंने रौशनी जीने की !
क्या हुआ,
जो आज डूब जाऊँगा
वादा हैं मेरा ,
कल सुबह फिर आऊँगा
लिया हैं जो प्रण
उसको निभाऊंगा !
सिखा कर तुम को
खुद जलना,
उन्नति की राह
बनाना सिखाऊंगा !
--- अमित ५/०४/२०१०
1 comment:
aap se roshan ye hamara ye blogisthan
bahut sundar rachna he aap ki
shekhar kumawat
http://kavyawani.blogspot.com/
Post a Comment