आज़ादी,
शब्द सुनते ही,
जोश की लहर दौड़ जाती
जोश तो जोश है
समय, बे-समय आ जाती
शब्द सुनते ही,
जोश की लहर दौड़ जाती
जोश तो जोश है
समय, बे-समय आ जाती
होश अगर इसमे खो जाए
यारो, शामत बडी आ जाती
हाल अपना भी कुछ ऐसा हुआ
श्रीमति जी जो मायके गई
१५ अगस्त सा हर दिन लगता
किस को अब पडी है
जो सुबह सुबह उठता
सुबह की सैर अब कहाँ होती है
९ बजे आँखे अब खुलती है
घर का काज कैसे, क्या होता है
नई आज़ादी में ख्याल कहाँ होता है
अखाडे में जा अब देही कौन तोडे
काम और करने को हमने रख छोडे
फल अब से कहाँ खाए जाते है
रोज पिज्जा - बर्गर मगाए जाते है
आख़िर, आज़ादी का जोश था
आगे क्या होगा किसे होश था
श्रीमती जी कब वापस आएँगी
जोश मैं ये भी भूल गये
गई शाम घर जब लौटे तो
देख श्रीमती जी को घर पर
हाथ से तोते छूट गये
देख हालत घर की और हमारी
वो गुर्राई जाती थी
सुनके दहाड़े उनकी,
जोश को भी धीरे धीरे होश आई जाती थी
हालत पर अपनी बडा तरस आता था
अब हमे ख्याल आता था
जब से हुई शादी, दूर हुई हम से आज़ादी ...
--- अमित ११/०७/08
1 comment:
Great Shot--- Will remember it always --- Vaibhav
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