चाहे जहाँ चाहो
चले तुम जाओ
कौन परवाह करता है
क्या तुम्हे लगता है
बस तुम से ही हम है
न होगे तुम तो
कहीं न हम होंगे
तुम्हे क्या पता
बस, अपने दम से है हम
याद न एक दिन आयगी
मजे में बसर जिन्दगी हो जायेगी
क्यों ये विश्वास
आज हमे धोखा दिए जाता है
रह रह साथ गुजारा
हर पल याद आता है
की जो तुम से बे-रुखियाँ
जला उनसे आज मन जाता है
याद तुम न आओगे
ये महज एक धोखा था
न पाकर तुम्हे करीब
दिल अपना रोता है
ये न सोचता था कभी
इतने तुम याद आओगे ...
--- अमित १२/०७/०८
2 comments:
सम्मान्य, आपकी भावाभिव्यक्ति सशक्त है....अनुभूति की तीव्रता होने पर ही ऐसी रचनाये निर्मित होती है.....समर्पित रहिये..... सुभकामनाओं सहित....
Really good Amit!
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