दिखाई नही येँ देती हैं
समझा बस इनको जाता है
बाँधी नही येँ जाती हैं
बंधा इनसे बस जाता है
जुबाँ कुछ होती नही इनकी
इन्ही से इनको समझा जाता है
जात- पात, धर्म-मजहब
इनको कुछ पता नही
रिश्तों की कोई ज़ंजीर नही
सरहदों से कहाँ येँ थम पाती हैं
चीर सरहदों को
दूर दिलो तक जाती हैं
नही कुछ और येँ
भावनाए हैं,
जो हर दिल में पाई जाती हैं ...
--- अमित २६/०४/०८
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