कहते है वो
हम से भी हो परदा
तो क्या हुआ
जो हम है एक - दूजे के
शर्म तो हमारा गहना है
आप कुछ कहे
हमें तो परदा-नशीं ही रहना है
ना रहे परदे में तो
हया से आँखे झुक जाती है
हाथों में लगी हिना की लाली
रुखसारों पे आ जाती है
सर्द सा जिस्म होने लगता है
जान सी जैसे, निकली जाती है
आप तो बडे बे-शर्म है
शर्म आप को कहाँ आती है
मिलती है आप से नज़रे
और जान हमारी जाती है
हलकी सी एक छुहन
सिरहन एक जिस्म में दौड़ जाती है
अभी रहो जरा दूर ही हम से
महोबत की ये खुमारी
हम से न सही जाती है ...
---अमित ३०/०६/०८
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