Thursday, August 30, 2007

इत्तिफाक ...

इत्तिफाक से
इत्तिफाक बड़ी हसीं चीज़ है
इत्तिफाक से
आदम मिले हव्बा से
और बनी ये दुनिया
इत्तिफाक से
हम भूलें रास्ता
और पहुंचे तेरी गलियों में
इत्तिफाक से
तकती थी तुम किसी का रास्ता
इत्तिफाक से
किस्मत थी हमारी मेहरबान
और हुआ तुम को
मेरा कोई दुसरा शक्स होने का मुगालता
इत्तिफाक से
उस दिन अपना दिल भी ना माना
और रहने दिया हमने वो मुगालता
जब हुआ ज़ाहिर ये इत्तिफाक
दिल अपना हमे दे चुके थे आप
मगर ये सच मानो तुम
इतना सब होना
नही था महज़ एक इत्तिफाक
उपर खुदा ने लिख दिया था
पहले ही हमारा-तुम्हारा
जीवन भर का साथ ...
--- अमित ३०/०८/०७

मायने ...

क्यों करती हो तुम
बार-बार बस एक ही सवाल
आख़िर क्या मायने है
तुम्हारी जिन्दगी के
क्यों मिला है तुम्हे ये जन्म
समझाया है मैंने हमेशा तुम को
बनाने वाले ने सब को एक सा बनाया
दिए सब को दो पैर- दो हाथ
एक दिल , दो आंख और एक दिमाग
दी आंखें, देखो दुनिया को
दिया दिमाग, समझो इस को
दिया दिल , करो साहस रखो विश्वास
दिए पैर, हिम्मत कर खडे होने को
और हाथ, कुछ कर गुजरने को
फिर क्यों पूछते हो यह बार-बार
नही तो तुम मजलूम
नही हो तुम लाचार
उठो, अगर नही मिलते मायने जिन्दगी के
करो कुछ नया सर्जन
और दो खुद के मायने
जिन्दगी को अपनी तुम ...
--- अमित ३०/०८/०७

अहसास !!!

अहसास !!!
मानो तो एक जीवन
ना मानो तो बस एक शब्द
मुझे अहसास है की
तू मेरे साथ है
और यह अहसास ही
मेरे जीने की आस है
तेरे प्यार का अहसास
यही तो है जिसने दिया
इस ज़र्रे को खास होने का अहसास
यह अहसास ही तो है
जिसने दूरी को भी नजदीकियां कर दिया
मैंने ज़रा बंद की अपनी आँखें
और दिल में तेरे चहरे का दीदार कर लिया
अभी चल रहा है विरह माना
मैंने तो करता हूँ, तुम भी कभी आजमाना
बंद अपनी आंखे करना
अपने मन में मेरा स्पर्श का अहसास लाना
देखना विरह ना तुम्हे सतायेगी
और अपने मिलन का अहसास तुम कर पाओगी ....

--- अमित ३०/०८/०७

Tuesday, August 21, 2007

ख़ून-ए-दिल ...

दुखता है अब बहुत दिल मेरा
होता है बेचैन दिल मेरा
जुबान से नही होते बयां
अब मेरे ज़ज्बात
और आँखें करती
हर ज़ज्बात बयां हमारा
मैं तो रहा हमेशा ही
महफिलों में भी अकेला
इस अकेलेपन में भी
किसी ने ना हमे कभी छोडा
हम तो किसी से कुछ ना बोले
लोगो ने हर कदम
हम को किया रुसवा
हमारा दिल तोडा
और दिया है हमे
ज़ज्बातों से खेलने का इलज़ाम
मेरी जुबां हमेशा चुप रही
दिल का लहू मगर चुप ना रहा
और ज़ोर ज़ोर पुकारा
देखों कभी गरेबान में अपने
मेरे दिल का ही नही
ना जाने कितनों का
ख़ून-ए- दिल है जो
ले रहा है नाम तुम्हारा ...
--- अमित २१/०८/07

यह सच है मगर ...

तुम मानोगे नही
यह सच है मगर
दिल कभी तुम्हारा
दुखाया नही हमने जानकर
कुछ समय का साथ ऐसा था
सब कुछ लुटा, कुछ पाया नही
चाहा है तुम्हे तह-ए-दिल से
काम मगर ये कुछ आया नही
हमने हमेशा तुम्हारी खुशियाँ ही चाही
और ना जाने ऐसा क्यों हुआ
हुई कुछ गलत फेहमिया
और ख़ुशी के बदले दुःख हम दोनो ने पाया
तुम को लगता पत्थर हूँ मैं
देखा तुमने कभी नही
इस पत्थर दिल इन्सान ने
सीने में मॉम सा एक दिल पाया है
आप ने किया गुस्सा हम पर
बुरा बहुत हम को बताया
तोड़ रिश्ता हमसे कहीँ और जोड़ लिया
हम तो आज भी तनहा रहते है
और सब से कहते है
कभी किसी का दिल ना दुखाना ...
--- अमित २१/०८/०७

Sunday, August 19, 2007

समझते हो हमे ...

क्यों करते हो नाहक कोशिश
समझ हम को जाने की
रखा था जिसने
नौ महिने अपने गर्भ में
पाला-पोसा , बड़ा किया जिसने
करती है वो आज भी कोशिश
समझ हम को जाने की
तुम से हमारा तो
बस इत्तिफाक है चन्द मुलाकातों का
और उस पर दावा है
तुमने हमे समझा है, तुमने हमे जाना है
क्यों छलते हो अपने आप को
करते जाओ योंही कोशिश
हमे समझना आसान नही
यह तो एक लम्बा सफ़र है
जिसका तुम्हे अनुमान नही
ये तो तुम्हारा आगाज़ ही है
अंजाम किसी को पता नही ...
--- अमित १९/०८/०७

Tuesday, August 14, 2007

हम हिंदुस्तानी ...


उठी है जब भी

कोई ऊँगली तुझ पर

और हुई कोई गुस्ताखी

तेरी शान में

चढ़ी है हमेशा ही त्योरिया

और आया है उबल

रगो में दौड़ता लहू

फड़क उठती है भुजाये

और जल उठते है आंखों में शोले

वो सोच भी सकते है कैसे

जो खडे हो हमारे खिलाफ

हम तो ऐसे है

जो घर से बाहर ना झाकें

और ऐसे भी

जो डाले हम पर बुरी नज़र

हम उसको ना छोड़े कहीँ पर

आये जो नेक नियत से

उससे मिले हम खुले दिल से

सीखाया है उसे सबक बडा अनोखा

की जिसने भी कोशिश दे हमे धोखा

हम तो अपनी राह चलते है

खुश रहते है ,औरों को खुश रखते है

उन्नति को और अपना हर कदम बढाते है

सारे जग में "हिंदुस्तानी " हम कहलाते हैं ...


--- अमित १४/०८/०७

Saturday, August 11, 2007

कुछ अनकही सी...

मिले वो बाद अर्से के आज
हुई फिर उनसे
बाते कुछ अनकही सी
लब उनके सिले थे
लब हमारे सिले थे
खामोशी से आंखों-आंखों मे
बातों के वो दौर चले थे
देती थी सुनाई
उनके दिल की धड़कन
छूती थी मुझको
उनके साँसों ही गर्माहट
होती थी साफ महसूस
हरारत उनके बदन की
झलकती थी बेताबी चेहरे पर
उनके चंचल मन की
आपस में उलझी उँगलियाँ
दिखाती थी उथल-पुथल
कुछ ख्यालों की
जो चल रही थी
अंतर-मन में कहीँ
वो हिज़र भी क्या था खुदा
जो था उन्होने
उपर से नीचे तक ओढा हुआ
एक दूजे की आंखों में
दोनो यों डूबे थे
कुछ ख़बर ना थी
कब दिन का दामन छुटा
और शब ने कलाई थाम ली
अब तो वक़्त-ए-रुखसत था
जाने कैसे इन पलकों ने
अश्कों की बाढं
आंखों के साहिल पर थाम ली ...
--- अमित ११/०८/०७

Friday, August 10, 2007

तेरी चुडियॉ ...


लगती हैं बड़ी सुंदर तुम पर
फबती हैं हर दम तुम पर
मोह लेती मेरा मन
जब करती ये छन-छन
नाज़ुक है तेरी कलाईयां
बनाती ये उनको और सुंदर
जब चढती यें उन पर
नीली-पीली हैं रंग बिरंगी
मेरे प्यार की यें है सोगात
कांच की हैं, पर पूरा करती यें तेरा शृंगार
कीमत तो है इनकी, झलकता इनसे प्यार
तू है सुहागन दर्शाती हैं यें हर दम
रहे तू सदा सुहागन , यही कहता है
तेरी कलाई में पडी हर चूड़ी का मन ...


--- अमित १०/०८/०७

Tuesday, August 7, 2007

मेरी माँ ...


बोलना जब आता नही था


मेरा हर इशारा समझती थी वो,


चलना जब आता नही था


ऊँगली थाम चलाती थी वो,


रहता था जब मैं बीमार
रात रात भर कहॉ सोती थी वो,


ज्ञान का पहला पाठ पढाने वाली थी वो,


जागा किया करता था जब पढने को


मेरा पूरा ख़्याल रखती थी वो,


जब भी कभी चोट लगी मुझको


ना जाने कितने प्यार से संभालती थी वो,


याद है मुझे जब गया था दूर काम को मैं


खुश थी मगर जुदाई के अंशु छुपाती थी वो,


हुई थी जब मेरी शादी


ख़ुशी से हर तरफ नाचती थी वो,


मैं बस सोचता भर ही हूँ


मेरे मन की हर बात जान जाती है वो,


तुम पूछते हो कैसी है वो
और मैं सोचता हूँ


शब्दों मैं कैसे तुम को बता दूं


मेरी "माँ" है वो बस इश्वेर के जैसी है वो...






--- अमित ०७/०८/०७

Monday, August 6, 2007

यह मजबूरी ...

सूरज ने अभी ठीक से आँखें भी ना खोली थी
और आधी दुनिया नींद के झूले में झूल रही थी
ऐसे में कोई उठा और निकल पडा रोजी की तालाश में
परवाह है ना उसे अधूरी नींद की और ना फिक्र आराम की
कम्बख्त, जेठ की गरमी भी बड़ी निरदयी है
यह देखती है ना कोई मजबूरी ,ना कोई लाचारी
यह देखती है ना कोई नंगा शरीर और ना भूखा पेट
यह जानती है बस झुल्साना शरीर का
लगा हुआ है मगर वो अपने काम में
भूलाकर इस तपती धुप का प्रहार
धुप की जलन कहॉ उसको जलाती है
यह तो पेट की आग है जो उस से ना सही जाती है
परिवार उसका भूखा है यह सोच कुदाल और तेज़ हो जाती है
सच है, यह पेट की भूख , ये मजबूरी
इस इन्सान से ना जाने क्या क्या करवाती है ...
--- अमित ०६/०८/०७

Sunday, August 5, 2007

तुझ से मिलना ...

देखा था जब आते तुझे
मंदिर में पहली बार
रह गया था, एक सकते में मैं
थी तो तुम एक दम सादा
किया था मगर इस सादगी ने
मुझे आकर्षित बहुत ज्यादा था
आकर तेरा वो झुक कर, मंदिर का दर छूना
कर के दुपट्टा सिर पर , वो आरती लेना
की थी जब तुने पूजा में बंद आँखें
लगता था चहरे की आभा से
लगी हो जैसे पुकार तेरी , सीधी इश्वेर से जाके
ना जाने क्यों लगा था मुझे
सफल होगया मेरा जीवन उस दिन वहाँ आके
और फिर अपनी माँ के साथ मेरी करीब आना
लिये आंखों में हया, वो मुझसे बाते करना
ज्यों ज्यों मैं तुम से बाते किया जाता था
बस तेरी सादगी पर ही मैं आसक्त हुआ जाता था
तेरी कही एक एक बात तेरे मन का आईना था
सच इश्वेर ने बड़ी सादगी से तुम्हे बनाया था
मेरी किस्मत ने आज खटखटाया मेरा दरवाजा था
और हम बने जीवन साथी, यह दोनो दिलों का फैसला करवाया था ...
--- अमित ०५/०८/०७

Friday, August 3, 2007

बस तेरे लिए ...

दी है रब ने मुझे ये आंखें
तेरा दीदार करने के लिए
दी है रब ने मुझे साँसे
तुझे प्यार करने के लिये
दिये है रब ने मुझे ये होंठ
तेरे रुप का बयां करने के लिये
दिये है रब ने मुझे यह हाथ
तेरा शृंगार करने के लिये
दिया है रब ने मुझे दिल
तुझको दुनिया की नज़र से बचा कर रखने के लिए
दी है इस दिल में धड़कने
तुझे बे-इन्तहा मोहब्बत करने के लिये
तुम मानो या ना मानो
दिया है रब ने मुझे जन्म
बस तेरे लिये ...
--- अमित ०३/०८/०७

ढून्ढता हूँ मैं तुम्हे ...

ढून्ढता हूँ मैं तुम्हे
सावन में बरसती
रिम झिम बरखा में
ढून्ढता हूँ मैं तुम्हे
बहारों में खिले
फूलों के गुलिस्तां में
ढून्ढता हूँ मैं तुम्हे
उगते सूरज की लालिमा में
ढून्ढता हूँ मैं तुम्हे
चांद की चांदनी में
ढून्ढता हूँ मैं तुम्हे
मस्जिद से उठती अज़ानो में
और मंदिर से आती आरती में
जैसे ढून्ढता कस्तूरी मृग
कस्तूरी को हर जगह
मैं ढून्ढता तुम को
हर जगह और जानता नही
तुम बसी "मेरे दिल में "...
--- अमित ०३/०८/०७