हम है भारतीय,
संस्कृति पर अपनी करते हैं नाज़!
पश्चिम वालो को चरित्र हीन है बोलते,
खुद बहू-बेटी और बच्चियों से करते है बलात्कार !
हम है भारतीय,
खुद पर बहुत करते हैं नाज़ !
और कहाँ कौन करता है माँ-बाप का मान,
भरे पड़े है अपने यहाँ सारे वृद्ध धाम !
हम है भारतीय,
खुद पर बहुत करते हैं नाज़ !
खून ख़राबा तो उनके धर्म में है लिखा,
गली-गली यहाँ क़त्ल भाई ने भाई का किया!
हम है भारतीय,
खुद पर बहुत करते हैं नाज़ !
कसमे खाते हमारी इमानदारी की,
जाने क्यों होते घोटाले यहाँ तमाम !
हम है भारतीय,
खुद पर बहुत करते हैं नाज़ !
राम-रहीम, किशन का था देश,
भेड़िये अब यहाँ घूमते, इंसान का है वेश!
(कुछ कहने की ज़रूरत नहीं है की क्या सोच कर लिखा है... किसी भी दिन का अखबार उठा लीजिये , जबाब मिल जाएगा)
--- अमित २७ /०३ /२०११
1 comment:
तीखा कटाक्ष... सच है कि आए दिन अख़बारों में ऐसा कुछ पढ़ने को मिल जाता है कि बेबस होकर रह जाते हैं..
रचनाजी को शुक्रिया कि आपकी लेखन कला और भाव को जानने समझने का मौका मिला...
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