Tuesday, March 8, 2011

कविता वीर रस की ...

गये दिनों कुछ कवि सम्मलेन सुने

वीर रस से थे सभी कवि तने...

बाते सबकी सुनकर मजा खूब रहा था,

कुछ ज़हन में बार बार मगर रहा था...

चाहे आप छोटा मुहं और बड़ी बाते बोले

तर्क अपना मैं ज़रूर सुनाऊंगा ...

ऐसी घटना बस हमारे यहाँ ही होती है ,

साल में बस दो ही दिन, देश भक्ति जगी होती है...

भर जोश में हर कोई दहाड़ता है,

इतिहास का शिक्षक, भूगोल बदलने की बात करता है...

आतंकी कोई किसी को तब बताता है ,

तो वन्दे मातरम् कोई "पाक" से गवाता है ...

शक नहीं की "पाक" को वन्दे मातरम् गाना पड़ सकता है,

डर है यह की अपनों को वन्दे मातरम् सिखाना पड़ सकता है ...

अपने यहाँ वन्दे मातरम् अब कौन गाता है

शकीरा और मडोना का गीत यहाँ धूम मचाता है...

बच्चा-बच्चा वहां कलमा जानता है

गायत्री मन्त्र, हनुमान चालीसा, जन गन मन और वन्दे मातरम् यहाँ कितनो को आता है ...

राम और लक्ष्मण से चरित्र अब यहाँ जन्म पाते है,

भगत सिंह और "आज़ाद" को अपने अब आतंकी बताते है...

क्या हम सिखाते है अपने बच्चो को,

क्या उनको को अब आता है?

एक बार आप यह गिनती करा कर देखिये,

झुकती है कैसे शर्म से गर्दन , जरा फिर देखिये...

बस गाने से शोर्य गीत, कहानी बदल जाती है,

खोखली हो नीव अगर, इमारत एक दिन तो ढेह जाती है ...

--- अमित ०७/०३/२०११

1 comment:

Niraj Upadhyay said...

hi amit u have read your post & this is my first visit on this site you know you have put down there a lot of realteas from smal poem .wel done my friend. keep it up.

Niraj upadhyay
Asst manager
Ubi regional office azamgarh....
nirajupadhyay_1@yahoo.com