लिख रहे है एक किताब, बात यह उनको बताई
सुन कर बात हमारी , उन्होंने फिर अचरज दिखाई...
रोज़मर्रा दौड़ धुप से , कैसे समय बचाते हैं,
कहाँ से सोचते है इतना सब, जो यह कर पाते हैं ...
की हमने भी कोशिश, करे कुछ हट कर ,
चंद दिन का जोश होता है, अलग फिर हट जाते है ...
सुन कर उनकी बाते, हलकी सी एक मुस्कान आई ,
समस्या है यह आम, बात हमने उनको बताई ...
बस एक प्रश्न है सभी समस्याओं का हल ,
बस ज़रूरत है दिमाग पर दे तनिक बल ...
घर की भी पहली मंजिल पर जब जाते है,
क्या सारी सीढियाँ एक डग में चढ़ जाते है ...
एक एक कदम जब हम अपना बढाते हैं
मंजिल पर तभी अपनी हम पहुँच पाते हैं ...
जाने क्यों पहला कदम बढ़ाने से हम डरते हैं ,
जब हो जाए शुरुआत , रास्ते खुद-ब-खुद निकलते हैं...
अच्छा था या .बुरा, छोटा या बड़ा, शुरुआत में येँ बे-मानी हैं,
सागर हो t चाहे पास अपने, मगर प्यास कुए ने ही बुझानी हैं...
जैसे बिना नियम के साधना अधूरी हैं,
करना हैं सफल होने को निरंतर प्रयास, यह वचन जरुरी हैं ....
(एक मित्र को एक शुरुआत करने के लिए प्रेरित करने को )
--- अमित २०/१२/१०
7 comments:
Acchi hai.......likhate jaao
ok i will buy your first book
प्रेरक रचना है। बधाई स्वीकारें।
bahut khoobsurt
mahnat safal hui
yu hi likhate raho tumhe padhana acha lagata hai.
keep writing...........all the best
प्रेरक रचना है। बधाई स्वीकारें।
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