Monday, December 13, 2010

भैय्या जी ...

अपने हास्य लिखने के पीछे एक राज है
आज उस राज से पर्दा उठता हूँ ...
आओ चलिए आप को मैं
अपनी कविता की प्रेरणा से मिलाता हूँ...
अरे आप कहाँ कल्पनाओं में खो गये,
यह पहले पुरुष है जो सफल आदमी की प्रेरणा हो गये...
यों तो बड़ा बुलंद सा स्वर इनका कानो में आता है
और देखे जब इनको, सूखे पात सा बदन नज़र आता है ...
बदन के साथ मिजाज़ ने न ताल-मेल खाई है ,
सौ ग्राम के शरीर में , एक किलो अकड़ आई है ...
शक्ल से बहुत हंसमुख लगते है ,
पर आप खोले जरा मुख, किलस यें पड़ते हैं ...
कुछ शब्द बहुत विशिस्ट है,
संग इनके प्रयोग उनका न बिलकुल करिये...
प्रयोग से उनके , गरम तुरंत यें हो जाते है,
आग न लग जाए सूखे बदन में , हम जरा घबराते है...
दातं तो नहीं गिरे है इनके दूध के भी अभी ,
न हक़ ही लोग इनको , बुजुर्ग बताते है ...
क्या हुआ जो जीवन की सुई छ: को पार कर गई,
छ: मील की दौड़ जब बोलो लगा आते है ...
राजनीति के तो महा गुरु है ये,
जब भी आप मिलये दो मन्त्र सीख आइये ...
कैसे बनाई जाती है आग,
और कैसे बचाई जाती है अपनी, निकल वहां से भाग...
यह कला है अदभुत,
इनसे यह ज़रूर सीखिए ...
करने लगे हम इनके गुण गान तो करते ही जायंगे,
कहीं तो करना है विराम, तो यहीं पूर्ण विराम लगायेंगे...
वैसे हम दोस्तों में दूर से यें पहचाने जाते है,
और प्यार से "भैय्या जी " कहलाये जाते है ...
( सभी जानते है इनको !!! )
--- अमित १२ /१२ /१०

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