प्यार का त्यौहार करीब आ रहा था
देवी जी थी दूर देश में
तोहफे का ख्याल , फिर भी सा रहा था...
होता भी न तो कैसे,
पहले वाला वैलंटाइंस डे
मुझे भूले न भुला रहा था...
भूल गये थे गिफ्ट हम,
और फिर मिली थी जो फटकार
सोच कर उसे, दिल घबरा रहा था...
छान चुके थे हम सारे,
याद थे जितने भी बाज़ार हमारे...
फरमाइश जो उनकी थी,
चीज़ यहाँ कब मिलनी थी...
फिर सोचा इन्टरनेट की शरण ली जाए,
खरीदे कुछ ऑनलाइन
और उनको खुश किया जाए ...
जा वेबसाइट पर जो निगाह मारी
अचरज से आँखें फ़ैल गईं बेचारी...
पचास का था जो कभी गुलाब
पांच सौ का हो अब इतराता था,
देख दाम चोकोल्ट्स के
मुहं कड़वा हुआ जाता था...
फिर देखा हमने एक "टेडी बेर"
कास्ट उसका न हो रहा था "बेअर"...
इस उधेड़ बुन में तारीख आ चुकी थी,
मारे डर के, जान अपनी जा चुकी थी...
दुविधा अपनी कैसे उनको समझायेंगे,
साथ ले यह चंद लाइने,
प्यार का त्यौहार मनाने जायेंगे...
(इस साल यह त्यौहार ऐसे ही मना)
--- अमित (१४/०२/२०११ )
1 comment:
बहुत सुंदर !
कविता को एक नए अंदाज़ में परिभाषित किया है आप ने !
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