Monday, March 22, 2010

शब्दों की धार ...

गये दिनों से चर्चा कुछ गर्म थी
दिखाई न दिए वो एक अरसे से
बात लोगो को हज़म कम थी !
सुगबुगाहट तो कानो तक उनके भी थी
दे कान हर एक आहट पर
आदत येँ जरा उनको न थी !
सही ही हैं
सूरज को नहीं ज़रूरत
करे मुनादी अपने आने की
सात घोड़ो की टापे
काफी हैं सोतो को जगाने !
छुपा रहे चाहे लाख बदली में
आना ही हैं बाहर
रौशनी अपनी उसको फैलाने !
हुई आज जो वापसी फिर
वही चमक हैं आँखों में
शब्दों के खिलाड़ी हैं
वही धार हैं बातों में ...
(on seeing yatish active after long time )

6 comments:

कृष्ण मुरारी प्रसाद said...

कविता से पता चलता है कि आपके आँखों में बहुत पानी है....लगता है...पानी दिवस का असर है....
....
...............
विश्व जल दिवस..........नंगा नहायेगा क्या...और निचोड़ेगा क्या ?...
लड्डू बोलता है ....इंजीनियर के दिल से..
http://laddoospeaks.blogspot.com/2010/03/blog-post_22.html

Yatish Jain said...
This comment has been removed by the author.
Yatish Jain said...

सोचा था आप ज़रूर आयेंगे
अपने आने की आहट सुनायेगे
आपने हमें याद किया
शुक्रिया शुक्रिया शुक्रिया

Dev said...

वाकई में शब्दों और भावों का नयनाभिराम संयोजन प्रस्तुत किया है

Udan Tashtari said...

बढ़िया रचना!!


--


हिन्दी में विशिष्ट लेखन का आपका योगदान सराहनीय है. आपको साधुवाद!!

लेखन के साथ साथ प्रतिभा प्रोत्साहन हेतु टिप्पणी करना आपका कर्तव्य है एवं भाषा के प्रचार प्रसार हेतु अपने कर्तव्यों का निर्वहन करें. यह एक निवेदन मात्र है.

अनेक शुभकामनाएँ.

संजय भास्‍कर said...

दिल को छू रही है यह कविता .......... सत्य की बेहद करीब है ..........