घर में हुआ बेटा , मनाई गई खुशियाँ
बस चंद ही दिनों में सामान्य हो गई दुनिया
ज्यों ज्यों , बड़ा होता बेटा
वो सुनता, जो पिता उसका कहता
"बेटा, किये मैंने सब जतन,
और ज्यादा मैं मेरे से कुछ होता...
देखे हैं दुःख मैंने बहुत,
चाहता नहीं मैं , तू वो देखे ,
कर खूब पढाई , खूब मेहनत
मुझे हैं डर , मैं कुछ ज्यादा कर पाऊँ "
बेटा था आज्ञाकारी
चाह थी आशाये, पिता की पूरी हो सारी...
भुला दी दुनिया सारी, और की दिन रात मेहनत
चंद दिनों कि दूरी, ने रंग दिखलाया
कल के त्याग ने, आज जाके रंग दिखलाया
बदल गयी घर कि सूरत सारी...
सारा घर परिवार संग खुशियाँ अब मनाता हैं
रहती चमक आँखों में पिता कि,
और गर्दन बेटे के सम्मान से हुयी ऊँची...
--- अमित ७/०३/2010
1 comment:
बहुत गहरी बात कह दी इन दो पंक्तियों में ...
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