कई दिन गये ,
आज फ़िर गये हम
घुमने वही "पार्क"...
छोटे छोटे पेड़ों
फूलों की कियारियों
और सुंदर फ़वारे से सजा ,
बडा सुन्दर लगता वो "पार्क"...
आज तो दर्शय था बहुत प्यारा
छोटे छोटे , नन्हे - मुन्नों से भरा था वो "पार्क"...
इधर देखा वो छोटा बच्चा
छोटे छोटे कदमो से भागा जाता था
भाग रही थी माँ उसके पीछे
हाथ मगर कहाँ वो उसके आता था ...
एक कूदता पानी में फ़वारे के
दूसरा देखा उसे घबराता
और जा अपनी माँ पास छुप जाता
मन फ़िर करता पानी में कूदे
क्या करे वो डर फ़िर जाता ...
वो देखा गेंद से बालक एक खेलता
मारता कभी पाँव से गेंद को
और कभी ख़ुद ही गिर जाता
हो खडा और ज़ोर लगा पाँव मारता ...
देख देख बच्चों के करतब
बडा मजा आता था
बडा मजा आता था
मन तो अपने बचपन में भागा जाता था
काश रोज़ ऐसी शाम आए
जो बचपन में मेरे मुझे ले जाए ...
--- अमित २२-०३-२००९
1 comment:
kuch bhi kho..kya nya rup diya hai poem me kahi kahi....:))
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