Friday, March 6, 2009

शांत रहो ...

हर गये दिन जुमला एक

कानो में हमारे पड़ता हैं

छोड़ा हमको नही जायेगा

हर हिसाब हम से

एक दिन लिया ज़रूर जाएगा ,

कह कर कोई

गुस्से से अकड़ता हैं ...

आदत से हम भी मजबूर हैं

गुस्से पर मुस्काते हैं

जले हुए दिल को ,थोड़ा और जलाते हैं ...

येँ जनाब भी , जरा हट के हैं

सोचते हो हैं , जाने क्या कर देंगे

पकड़ कर कान चाँद का

जमीन पर ला रख देंगे

और पकड़ कर दुम शेर की

बना दरबान ,

खडा दरवाजे पर कर दंगे ...

धाक जम मगर कहीं न पाती हैं

बनती - बनती बाजी इनकी , बिगड़ ही जाती हैं

पासे जाने पलट कैसे जाते हैं

होकर इनका , इन्हे ही चिडाते हैं ...

खिसाय्नी बिल्ली सी इनकी हालत रहती हैं

और दुम सदा टांगो में छिपी रहती हैं ...

पडे जब भी उस पर पैर हमारा

"शांत रहो - शांत रहो "

गूंजता हैं कानो में येँ नारा ...

--- अमित

1 comment:

Vaibhav said...

Hi All readers,

I really can't make out that how a person like Amit or a poet can write something like so nice and funny in such a beautiful pairs of words....

Only god or a poet can understand how such lines emerged.

Someone said correctly, "Jahan Na Pahunche Ravi(SUN),Wahan Pahunche Kavi(POET)

Keep on good work Amit. All the best...

This appreciation is when he has pulled my leg so much in these lines ;-)