Monday, March 9, 2009

ठहराव...

ठहर सी गई है जिन्दगी;

अब कुछ ऐसा लगता है ...

आ कर एक दोराहे पर

कुछ सोच में पड़ गई है जिन्दगी

अब कुछ ऐसा लगता है ...

करने को तो है बहुत कुछ अभी

जाने जान हाथों से निकल गई हो

अब कुछ ऐसा लगता है ...

शयद सुबह करीब ही है

घना हुआ अँधेरा सा लगता है

मैं तो चाहता हूँ नींद से उठना

जाने क्यों शरीर थका सा लगता है ...

कुछ तो हो ऐसा अब

जो कर दे मुझे सागर सा चंचल

ये ठहराव अजीब सा लगता है अब ...

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