जिंदगी का एक सवाल
बहुत मुझे खाये जाता हैं
क्या मेरा रुपया
आठ आनो में चलाया जाता है
चाह नहीं आँगन में
झाड़ एक रुपयों का लग जाये
पर जो चलता सवा में रुपया और का
मेरा बारह आनो में तो जाये
तनिक अभिलाषा नहीं
जीवन वैभव से भर जाये
पर तरसे हर सुविधा को
बात जी को बहुत जलाये
ठीक ठाक है वैसे तो कमाया
चंद पैसे मैं जोड़ भी पाया
बात फिर भी यह समझ न पाया
सामाजिक स्तर जाने क्यों नज़र न आया
घर , गाडी और समान
अभी हमसे तो न बन पाये
अपना घर , बड़ी गाडी और वैभव विलास
राम ही जाने , संगी कैसे हैं जुटाये
खुशियाँ किसी की कभी
विचलित न हमे कर पाईं
अपनी वाली कहाँ छुपी हैं
बस यही बात समझ न आई
बढती महंगाई का तो दोष नहीं
यह राक्षशी तो चहु ओर छाई
या कंजूसी नहीं वो चुड़ैल
खुशियां मेरी जिसने खाईं
या है से आज की पीढ़ी की
बदलती हुई नई सोच
"अरे कल किसने देखा है
बस भाईया , आज की ही सोच "
परिवर्तन के इस युग में
जीवन में बड़ी कठिनाई
एक तरफ कुआ दिखे
दूजी और खाई
आज कमा , कुछ खर्चे कुछ जोड़े
और खुशियाँ भविष्य पर छोड़े
या जड़े इस नई सोच से
कहता जो नया जमाना
कल की चिंता क्या करनी
आज कमाना और आज ही खाना
बहुत मुझे खाये जाता हैं
क्या मेरा रुपया
आठ आनो में चलाया जाता है
चाह नहीं आँगन में
झाड़ एक रुपयों का लग जाये
पर जो चलता सवा में रुपया और का
मेरा बारह आनो में तो जाये
तनिक अभिलाषा नहीं
जीवन वैभव से भर जाये
पर तरसे हर सुविधा को
बात जी को बहुत जलाये
ठीक ठाक है वैसे तो कमाया
चंद पैसे मैं जोड़ भी पाया
बात फिर भी यह समझ न पाया
सामाजिक स्तर जाने क्यों नज़र न आया
घर , गाडी और समान
अभी हमसे तो न बन पाये
अपना घर , बड़ी गाडी और वैभव विलास
राम ही जाने , संगी कैसे हैं जुटाये
खुशियाँ किसी की कभी
विचलित न हमे कर पाईं
अपनी वाली कहाँ छुपी हैं
बस यही बात समझ न आई
बढती महंगाई का तो दोष नहीं
यह राक्षशी तो चहु ओर छाई
या कंजूसी नहीं वो चुड़ैल
खुशियां मेरी जिसने खाईं
या है से आज की पीढ़ी की
बदलती हुई नई सोच
"अरे कल किसने देखा है
बस भाईया , आज की ही सोच "
परिवर्तन के इस युग में
जीवन में बड़ी कठिनाई
एक तरफ कुआ दिखे
दूजी और खाई
आज कमा , कुछ खर्चे कुछ जोड़े
और खुशियाँ भविष्य पर छोड़े
या जड़े इस नई सोच से
कहता जो नया जमाना
कल की चिंता क्या करनी
आज कमाना और आज ही खाना
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