Thursday, July 12, 2018

पहली बार अपने बेटे के लिए कुछ लिखा

कल शाम जब घर आया
बच्चो वाला घर है यह,
एहसास पहली बार पाया
ड्राइंग रूम की ख़ामोशी ,
आज कुछ अलग जान पड़ती थी
शायद गुजरा था कोई तूफ़ान
ऐसी सी कुछ , भान पड़ती थी
कौतुहल ,मुश्किल से  हमने संभाला
लैपटॉप के बास्ते को एक कोने में डाला
खाने का डिब्बा था अभी हाथ में ही लिया
और धीरे धीरे , रसोई का रुख किया
देख हालत रसोई की , आँखे फ़ैल आई
अपने डब्बा रखने की जगह भी हमने न पाई
फर्श पर फैले वो चिप्स के टुकड़े
मानो हमे चिड़ा रहे थे
दम है तो कदम यहाँ रखो,
संकेत उनसे कुछ ऐसे आ रहे थे
जैसे तैसे जगह बना
डिब्बा हमने अपना टिकाया
और हिम्मत जुटा
बैडरूम की तरफ कदम बढ़ाया
देख बैडरूम की हालत
बात तुरंत समझ आई
आज किसीने किसीको
याद छठी के दूध की दिलाई
शायद ही थी कोई चीज़
जो अपनी जगह टिक पाई
बाकी तो लगता मानो
पूरब-पश्चिम  ने जगह बदलाई
चादर तकिये , खेल-खिलौने
सब जान बचते पाये थे
कुर्सी मेज़ सब , बदहवास पाये थे
औंधे पड़े , दिन में तारे गिनते नज़र आये थे
नमकीन - बिस्किट्स भी बेचारे
कारपेट पर हाँफते पाये
देख सब यह विहंगम दृश्य
थोड़े से हम झुँन्झलाए
डाली जब निगाह हमने साहेब बहादुर पर
मुस्कान लिए चेहरे पर, सोते वो नज़र आये
देख सारा नज़ारा , हम समझ गए
श्रीमति जी ने आज तूफ़ान में दोपहर बिताई
ऐसे तूफ़ान  तो शायद अब  यदा-कदा आयेंगे
"कार्तिक" बाबू अब जल्दी ही अपनी दूसरी वर्षगांठ मनायेगे

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