Monday, November 11, 2013

मकाँ कहता हूँ ...

मैं आज कल परेशां सा रहता हूँ
बंद हूँ चार दीवारों में, मकाँ कहता हूँ ...
लोग कहते है मुझसे कि दुआ करो
और मैं बस भला करता रहता हूँ
मैं आज कल परेशां सा रहता हूँ
बंद हूँ चार दीवारों में, मकाँ कहता हूँ ...
वो लेता रहता है इम्तिहाँ
मैं बस उसकी रज़ा में रहता हूँ
मैं आज कल परेशां सा रहता हूँ
बंद हूँ चार दीवारों में, मकाँ कहता हूँ ...
आँखों की नमी श।यद उसका पैमाना है
वो दिल में झांक कर तो देखे, मैं कितना भीगा रहता हूँ
मैं आज कल परेशां सा रहता हूँ

बंद हूँ चार दीवारों में, मकाँ कहता हूँ ...

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