Friday, December 30, 2011

कहानी एक बाज़ार की ...

शहर के बीच एक बाग़ के पास बाज़ार में
श्रीमति जी के साथ हम खड़े थे किसी के इंतज़ार में !
बाज़ार में थी चहल पहल थी खूब जोर
अपनी भी नज़र घूम थी वहां हर ओर !
वहां दिया जो लोगो की गतिविधियों पर ध्यान
किस्सा है वो यहाँ आप के सामने ब्यान !
पार्किंग की पहले बात सुनाता हूँ
कितने हैं लोग समझदार बताता हूँ !
इठलाती हुई स्कूटी पर एक देवी जी वहां आई
दो गाड़ियों की जगह में स्कूटी जी अपनी फसाई !
अक्षांश क्या थे उस स्कूटी के, कुछ समझ आये
पर स्कूटी निकालने में जोर देवी जी ने पूरे थे लगाये !
इतने में एक हंसों का जोड़ा वहां आया
उसने अपनी स्कूटी को पार्किंग में लगाया !
वहीँ अपने प्रेम की पींगे वो बढ़ते थे
सीधे स्कूल से भागे नज़र वो आते थे !
लगता लड़कपन जा , जवानी चुकी थी
डर निकल दूर हुई , बहादुरी चुकी थी !
नज़रे घूम फिर एक दूकान पर पड़ी
लड़के - लड़कियों की कतार लगी थी वहां बड़ी !
दूकान में झाँका तो ज्यादा हो हैरानी पाई
और कुछ नहीं, वो था बस एक अग्रेजी "नाई" !
दो केंची इधर और चार इधर कर बाल छांटे जाते थे
बाहर लडके - लड़कियां झटके जुल्फों में दिए जाते थे !
देखो तो अब कानो तक लड़कियों के बाल लहलहाते थे
और लडको के बाल उनके कंधे चूमे जाते थे !
अंग्रेजी नाई से बाल बनवाने का मजा है निराला
मैं कहाँ उसको समझू, मैं कल्लू नाई से बाल बनवाने वाला !
फिर एक बड़ी गाडी में एक साहब वहां आये
मम्मी, बीवी संग बच्चो को घुमाने लाये !
कुछ ज्यादा भूखे थे, और भूख मिटाने की थी पूरी तैयारी
बैठ फूटपाथ पर अपनी पत्तल उन्होंने ने चाट मारी !
कुछ महानुभाव भी वहां हम को घूमते नज़र आये थे
ग़ज़ब थी कला, जिस से पतलून अपनी वो घुटनों पर टिकाये थे !
किरर्र धडाक की आवाज फिर हमको दी वहां सुनाई
देखा एक देवी जी ने स्कूटी अपनी एक बाइक में जा टकराई !
देवी जी तो साफ़ बच गई, चोट कुछ बेचारे लड़के को आई
और मजा देखिये, जनता की सहानुभूति सारी देवी जी ने पाई !
सोचने वाली बात है, महिल्याओं को कहाँ कम आँका जाता है
घायल पुरुष से ज्यादा एक देवी जी पर ध्यान यहाँ दिया जाता है !
यह तो बस था सड़क का हाल, समय की पाबंदी होती तो हम बाग़ में भी जाते
अभी तो बस कविता बनी है, यकीन है तब उपन्यास हम बनाते !

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