हो रहा है एक "हास्य कवि सम्मलेन"
हमारे दोस्तों का मेल आया...
"अमित जी" आप क्यों नहीं लेते भाग
सारे दोस्तों ने हमे चढाया ...
भोला मन बातो में आया
और जा हमने भी रजिस्ट्रेशन कराया...
एक दो ही कविताये अच्छी बन पाई थी
उन्ही के दम हमको लड़नी यह लड़ाई थी...
दो हफ्ते बीते, कहीं से कोई खबर न आई
लगा रेवीऊ पर ही वीरगति कविता ने पाई...
जाने कहाँ कैसे कहानी यह कुछ पलटा खा गई
और कवि सम्मलेन से के दिन पहले सलेक्शन की मेल आ गई...
ख़ुशी के साथ अब हमारी आँखों में तारे घूमते थे
स्टेज पर जाने की सोच, हाथ पाऊँ हमारे फूलते थे ...
हालत कुछ अजीब सी थी, करे क्या न सूझता था
रह रह गुस्सा कुछ, दोस्तों पर अपने फूटता था...
"घबराओं मत" दोस्तों ने हमारे समझाया
आओ करेंगे कुछ प्रेक्टिस सबका जबाब आया ...
पहली बार पढ़ी जब कविता, हैसियत अपनी समझ आई
एक भी न थी पंक्ति जो स्पष्ट मुहं से निकल कर आई ...
अपना तो यहाँ भी हो गया पोपट था
प्लान अब लगता यह भी चोपट था ...
हम तो थे जो थे हिम्मत अपनी हारे
मगर दोस्त कोशिश में अभी भी थे सारे ...
घंटे, लम्हों में बीत फिर वो शाम आई
और घबराते हुए हमने कवि-सम्मलेन में अपनी हाजरी लगाई...
कुछ दिग्गजों ने हमसे पहले थे वहां हाजरी लगाई
एक से बढ़ एक कविताये वहां उन्होंने सुनाई ...
अब हमारी बारी थी, संचालक ने आवाज़ लगाई
हिम्मत जुटा मंच पर पहुंचे, और कविता अपनी सुनाई ...
आवाज़ कुछ धीमी सी निकली , राम जाने कितने शब्द दिए सुनाई
कुछ तितलियों ने भी थी पेट में कुछ हलचल मचाई ...
पंक्तियों पर घर जाने कुछ जल्दी सी थी छाई
छोड़ कतार कुछ थी पहले मुंह पर हमारे आईं...
क्रम का वहां क्या किसी ने करना था,
जल्दी कर कविता खत्म, हमे तो बस निकलना था...
राम जी की दया से, जैसे तैसे इज्ज़त बचाई थी
हमारे मंच छोड़ने की ख़ुशी में फिर जनता ने ताली बजाई थी...
इस कवि सम्मेलन की जो है सीख, वो बतायेंगे
दोस्त चाहे अब कितना "चढाये", आगे से किसी मंच पर न हम जायेंगे ...
(" मुझे प्रेरित करने वाले सभी दोस्तों के लिए !!! ")
--- अमित (१७ /१२/२०११ )
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