किया क्या जाए
जिन्दगी न जब जी जाए !!!
कर लें खुदकुशी या
किसी को मार दिया जाए !!!
किया क्या जाए
जिन्दगी न जब जी जाए !!!
कितने करे जतन
उल्टा जब हर जतन जाए,
बात करे हम जिसके भले की
वही आ हम से भिड जाए !!!
किया क्या जाए
जिन्दगी न जब जी जाए !!!
सड़ चुके है रिश्ते सारे
ढोए उनको या
दफना दिया अब जाए !!!
किया क्या जाए
जिन्दगी न जब जी जाए !!!
किये थे हमने चंद वादे
कहीं खो गये उनके मायने
निभाया उनको अब जाए
या आज़ाद उनसे हुआ जाए !!!
किया क्या जाए
जिन्दगी न जब जी जाए !!!
मैं तो अब भी हाथ बढाता हूँ
भूल बिता हुआ सब जाता हूँ
किया क्या तब जाए
हाथ कोई अपना खीच जाए !!!
किया क्या जाए
जिन्दगी न जब जी जाए !!!
--- अमित (२३/०२/२०११ )
1 comment:
कोमल अहसासों से परिपूर्ण एक बहुत ही भावभीनी रचना जो मन को गहराई तक छू गयी ! बहुत सुन्दर एवं भावपूर्ण प्रस्तुति ! बधाई एवं शुभकामनायें !
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