Thursday, December 2, 2010

तोहफ़ा ...

दिन हमारा ख़ास रहा है

दे तुम को तोहफ़ा क्या

ख्याल दिल में बारबार रहा है...

सोचा तुम से ली जाए कुछ राय

ख्याल आया,

जो पूछ कर लाया, तो क्या तोहफ़ा लाया...

पास तुम गर हमारे होते

देते एक बोसा और

जुल्फों में कलियाँ पिरोते...

दूर हो तुम, दिल में जरा मलाल है,

क्या हुआ जो बीच अपने मीलों की दूरी है

देखे जो दिल में, तस्वीर तुम्हारी पूरी है...

सोचा कि, सोना-चाँदी का लाये गहना,

चंद दिन बाद तालो में है बस उनको रहना

सुना है, " हीरा है सदा के लिए !!!"

कीमत है कुछ उसकी,

कीमती मुस्कान उससे , तुम हो खुद लिए...

मिल जाए मुझे, शायद हजार चीज़े बाजार में

"जड़ ये चीज़े" रखती कुछ एहमियत, तुम्हारे प्यार में...

देना अब के है कुछ ऐसा तोहफा,

यादों में सुखद एहसास सा, जो रहे महका...

आदमी के "बोलो" में होती वोह बात

दूर हो कितने, रहते दिल के पास...

कितना प्यार तुम को करते है,

कविता में अपनी बतायेगे,

छोड़ के झूठे तोहफे, हाल अपने दिल का बताऊंगा

बना के गुलदस्ता अपने जज्बातों का

तोहफ़ा तुम को मैंने देने आऊँगा !!!


( शादी की तीसरी वर्षगांठ पर श्री-मति जी को स-सम्मान सप्रेम भेट )

--- अमित (०२/१२/२०१०)

2 comments:

संजय भास्‍कर said...

शादी की तीसरी वर्षगांठ पर
ढेर सारी शुभकामनायें.

संजय भास्‍कर said...

वाह !कितनी अच्छी रचना लिखी है आपने..! बहुत ही पसंद आई