Wednesday, December 1, 2010

अधूरी कवितायेँ ...

रह गई आज भी एक कविता अधूरी

बढ रही है संख्या कविताओं की, जो है अधूरी

यों तो खुद को शायर, कहलाते है हम

और ज़ज्बात भी ऊकेर पाते, कागज़ पे हम

मन की उथल पुथल आज फिर काम कर गई

एक और कविता, बनने से पहले ही दम तोड़ गई

जाने और कितने कत्ल लिखे मेरे नाम है

सिरहाने पड़ी मेरे वो लाशें तमाम

काश में उनमें फिर से जान फूंक पता

जो है अधूरी, पूरी उन्हें कर पता

शायर कहलाने का न कोई गुरुर होता

किया ज़ज्बातों को सही से ब्यान

बस इस बात का सुकून दिल को होता ...


--- अमित ( ०१/१२/२०१० )

2 comments:

संजय भास्‍कर said...

अमित जी
नमस्कार !
रह गई आज भी एक कविता अधूरी
बहुत खूब कह डाला इन चंद पंक्तियों में
कमाल की लेखनी है आपकी लेखनी को नमन बधाई

परमजीत सिहँ बाली said...

बहुत बढ़िया!!