मेरे कमरे में
कुछ समान अभी बाकी है
इबारते लिखी है कुछ कागजों पे
कोरे कुछ कागज़ अभी बाकी हैं
दवात में जो थी कभी श्याही
सूख कब की वो चली
रगों में दौड़ता लहू अभी बाकी है
मेरे कमरे में
कुछ समान अभी बाकी है
मेरी मेज़ पर रखा है
अभी वो आधा टूटा चश्मा
साथ पड़ी किताबों से
धुल हटानी अभी बाकी है
मेरे कमरे में
कुछ समान अभी बाकी है
टंगा है जो उस खूंटी पर
मेरे थैले में
यादों के चाँद टुकड़े अभी बाकी है
लेकर कहाँ मुझे जाते हो
मुर्दा तो सिर्फ जिस्म है
रूह में जान अभी बाकी है
मेरे कमरे में
कुछ समान अभी बाकी है
कुछ समान अभी बाकी है
इबारते लिखी है कुछ कागजों पे
कोरे कुछ कागज़ अभी बाकी हैं
दवात में जो थी कभी श्याही
सूख कब की वो चली
रगों में दौड़ता लहू अभी बाकी है
मेरे कमरे में
कुछ समान अभी बाकी है
मेरी मेज़ पर रखा है
अभी वो आधा टूटा चश्मा
साथ पड़ी किताबों से
धुल हटानी अभी बाकी है
मेरे कमरे में
कुछ समान अभी बाकी है
टंगा है जो उस खूंटी पर
मेरे थैले में
यादों के चाँद टुकड़े अभी बाकी है
लेकर कहाँ मुझे जाते हो
मुर्दा तो सिर्फ जिस्म है
रूह में जान अभी बाकी है
मेरे कमरे में
कुछ समान अभी बाकी है
--- अमित १४/०५/२०१०
2 comments:
bahut sundar Amit ji...
गुलजार की सी महक आ रही है कहीं कहीं इस रचना से...
बहुत खूब!!
Post a Comment