कुछ अरसा गये
लगाया था एक पौधा
आँगन में अपने ,
सोचा था
खिलेंगे फूल !
चूक हुई हम से एक
किया न ख्याल पौधे का ,
न सही दिया पानी
और न किया संरक्षण
तेज धुप
तेज धुप
और हवा के थपेड़ो से!
मुरझा गया वो, नन्ही सी जान!
गये दिनों
लगाया फिर एक पौधा ,
की रखवाली धुप और हवा
और सींचा उसको पानी से !
आज सुबह देखा
पौधा वो मुस्कुरा रहा था
एक नये फूल का अंकुर
नज़र उस पर आ रहा था !
--- अमित १२/०५/२०१०
3 comments:
bahut khoob...
सुन्दर पंक्तिया
बहुत बढ़िया!
एक विनम्र अपील:
कृपया किसी के प्रति कोई गलत धारणा न बनायें.
शायद लेखक की कुछ मजबूरियाँ होंगी, उन्हें क्षमा करते हुए अपने आसपास इस वजह से उठ रहे विवादों को नजर अंदाज कर निस्वार्थ हिन्दी की सेवा करते रहें, यही समय की मांग है.
हिन्दी के प्रचार एवं प्रसार में आपका योगदान अनुकरणीय है, साधुवाद एवं अनेक शुभकामनाएँ.
-समीर लाल ’समीर’
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