Saturday, August 22, 2009

चरित्र चर्चा...

बडे एक शापिंग मॉल के

महंगे एक कैफे में

कर रहीं थी वो चुहल !

चर्चा बड़ी ही ख़ास थी

शर्मा जी के बेटी

जो दिखी वर्मा जी के बेटे के साथ !

एक ने कहा, " देखा "पर " निकल आए है !"

दूजी कहाँ चुप रहने वाली थी

अरे आप को नही होगा पता

"सुबह से शाम गुजरती साथ है "

आज कल तो बच्चो का चलन ही खराब है !

चर्चा चलती गई और कालिख पुतती गई !

घनन -घनन तभी मैडम का फ़ोन घंनाया

हंस खिलखिला कर दो बातें हुई

थोडी देर में मिलने का समय ठहराया !

किया सहेली को विदा अपनी

और घर फ़ोन लगाया

बेटा , पापा को बोलना

मम्मा को अर्जंट मीटिंग का कॉल आया,

आते घर शाम को देर होगी जरा !

थोडी देर गये पापा का भी फ़ोन आया था

फंस गये है वो मीटिंग में ये फरमाया था ,

मम्मा, बेचारी को कहाँ था पता

पापा की मीटिंग है उसी सहेली के साथ

चरित्र चर्चा चल रही थी जिसके साथ ...

--- अमित २२/०८/०९

3 comments:

Anonymous said...

yahii haen traasdi sambandho ki
Rachna

ओम आर्य said...

बहुत ही सुन्दर चित्रण ..........पढकर मजा आ गया..........सुन्दर

Anonymous said...

Nice poem.
वैज्ञानिक दृ‍ष्टिकोण अपनाएं, राष्ट्र को उन्नति पथ पर ले जाएं।