उतारे जो उसने
कपड़े अपने तन से
मिटाने को भूख
अपने पेट की और
बेचा अपना शरीर
नाम हुआ "वेश्या"...
उतार कपड़े अपने
जब चलती
वो बल खाके
आगे एक कैमरे के
मिलती ख्याति
होता नाम...
सौपती जब खुद को
करने नया अनुभव वो
बस चंद रातो को
फिर मिलता नाम
"वेश्या" नहीं अब
सम्मानित स्त्री का स्थान ...
क्या अलग दोनों ने किया???
कमाल है
फर्क फिर भी हुआ यहाँ...
(रास्ट्रीय स्तर की एक महिला खिलाडी के धन और काम के आभाव में वेश्या वर्ती में आने पर ...)
--- अमित ०९/०८/०९
3 comments:
ऐसी ही दुनिया है..कहीं कुछ, कहीं कुछ!!
AMIT
very nice and expressive
Rachna
एक समर्पण है
दूसरा व्यापार।
व्यापार भूख है,
समर्पण प्यार।
बस! यही फर्क है।
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