बडे एक शापिंग मॉल के
महंगे एक कैफे में
कर रहीं थी वो चुहल !
चर्चा बड़ी ही ख़ास थी
शर्मा जी के बेटी
जो दिखी वर्मा जी के बेटे के साथ !
एक ने कहा, " देखा "पर " निकल आए है !"
दूजी कहाँ चुप रहने वाली थी
अरे आप को नही होगा पता
"सुबह से शाम गुजरती साथ है "
आज कल तो बच्चो का चलन ही खराब है !
चर्चा चलती गई और कालिख पुतती गई !
घनन -घनन तभी मैडम का फ़ोन घंनाया
हंस खिलखिला कर दो बातें हुई
थोडी देर में मिलने का समय ठहराया !
किया सहेली को विदा अपनी
और घर फ़ोन लगाया
बेटा , पापा को बोलना
मम्मा को अर्जंट मीटिंग का कॉल आया,
आते घर शाम को देर होगी जरा !
थोडी देर गये पापा का भी फ़ोन आया था
फंस गये है वो मीटिंग में ये फरमाया था ,
मम्मा, बेचारी को कहाँ था पता
पापा की मीटिंग है उसी सहेली के साथ
चरित्र चर्चा चल रही थी जिसके साथ ...
--- अमित २२/०८/०९
3 comments:
yahii haen traasdi sambandho ki
Rachna
बहुत ही सुन्दर चित्रण ..........पढकर मजा आ गया..........सुन्दर
Nice poem.
वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाएं, राष्ट्र को उन्नति पथ पर ले जाएं।
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