कुछ कर गुजरने की तमन्ना दिल में थी
अपने लिए तो सबको होती है
दुसरो के लिए , दिल में उसके थी ...
भीड़ से अलग रास्ता बनाना
काम येँ इतना आसान नही
आसानी से जो मिल जाए
वो मकाम , उसका मकाम नही ...
तैयारी अपनी भी पूरी थी
पता था ज़माना यों साथ न आएगा
ना जाने कब और कहाँ
यें ज़माना उंगली अपनी उठाएगा...
डर कोसो उसके कदमो से दूर था
पता था,
चाह है अगर रौशनी की
जलाना कुछ तो जरूर होगा ...
जले भी , तडपे भी ,
देख बदलते लोगो को
दिल दुखा भी ...
कदमो को पीछे हटा लेना
उसने कहाँ सीखा था
ऐसे लोग कहाँ मंजिल तक जाते है
मंजिल ख़ुद उनके क़दमों तक आती है ...
जीत आख़िर सच की ही होती है
उसकी दिखाई "जोत "
ज्वाला आज बनी जाती है ...
काम उसका हुआ पूरा
बारी अब हमारी है
जलाए यें जोत रखना
जिम्मेदारी अब हमारी है ...
( अपने गुरु जी को समर्पित )
--- अमित १४/०४/२००९
3 comments:
अमित जी,
अपने मनोभावों को बहुत सुन्दर शब्द दिए हैं।बधाई।
thanks amit although i dont desrve this yet thanks again
it has been a pleasure to know you as a blogger
well kahi kahi bhut bhavuk hogye ap.... bhut emotion dal diya ...good
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