Monday, October 22, 2007

भगवान् का फोन कॉल ...

ट्रिंग-ट्रिंग ट्रिंग-ट्रिंग
फ़ोन की घंटी बजी
मैंने "हैलो" बोला
और दूसरी तरफ
एक रोबदार आवाज ने
"कैसे हो" यह बोला
आवाज नयी थी
थोडा रोब से
हमने भी पूछा
हम तो ठीक है
मगर यह सवाल
किसने पूछा
आवाज थोडा गरमा गई
और गर्मी हम तक आ गई
हमे नही पहचानता
क्यों
क्या भगवान् को नही जानता
हम भी थोडा जोश में आगये
और फ़ोन पर ही टकरा गए
ज़ोर से कहा
भगवान् क्या फुरसत में है
जो हमसे टाइम-पास करने आ गए
पंडित जी ने कब उनको छोड़ दिया
और फोन की तरफ रुख कैसे मोड़ दिया
दूसरी तरफ से हंसी की आवाज आई
और कहा जानता थे तू मसखरा है
पर जैसा भी है दिल का खरा है
तेरी यह बात हमे बहुत भायी है
और तीन वर देने की इच्छा मन में आई है
शंका भरा एक प्रश्न तब हम ने दागा
करोगे हमारी इच्छा पूरी, रहा ये वादा
हमारी शक्ति को परखता है,
चलो वचन दिया, जो तुम ने कहा वो होगा
फ़ोन के दूसरी तरफ से इन शब्दों को मैंने सुना
धड़ाधड़ तीन वचन हमने माँग डाले
दुनिया में शांति हो ,
दुनिया में भेद-भाव न हो ,
दुनिया में सब के पास काम हो,
जिन को सुन फ़ोन काट भगवान् भागे
कुछ देर बाद एक एस-ऍम-एस आया
तुम इंसान हो, कभी नही सुधर पाओगे
ये कोई भगवान् नही दे सकता
खुद मेहनत, लगन और इमानदारी
इन तीनो से प्रयास करो तब ही पाओगे
घरन-घरन फिर घंटी बज रही थी
अब कब यो ही तक सोते रहोगे
माँ की आवाज कानो गूँज रही थी
उठे तो रात का सपना याद आया
होठो पे मुस्कान तैर रही थी
अपने लिए कुछ करने की नयी राह दीख रही थी ...
--- अमित २२/१०/०७

2 comments:

अविनाश वाचस्पति said...

एक काल हमें भी करवाओ
भगवान भाईसाहब की
हम भी बतियाना चाहते हैं
हम बतियायें तो
आपको कोई एतराज
तो नहीं होगा
आपने पेटेंट तो
नहीं करा लिया
वैसे कल रावण
हमसे बतिया रहा था
आप रावण से बतियायें
हम रावण से बतियायेंगे।

अविनाश वाचस्पति said...

उपर्युक्त टिप्पणी में

हम रावण से बतियायेंगे
के स्थान पर
हम भगवान से बतियायेंगे
पढ़ने का कष्ट करें।