हुई सुबह , दिन निकला
निगाह डाली कलाई पर
अलसाई आंखों से देखा
लगा थोडा जल्दी निकला
अभी बजा ही क्या था
छोटा कांटा आठ और
बड़ा बारह पर ही तो अटका था
ज़रा क़मर सीधी कर ले
यही सोच कर मैं लेटा था
ना जाने कब बिस्तर छोडा
और दफ्तर पहुँचा
अभी पहुँचा तो बस सुना
अभी पहुँचा तो बस सुना
दस का आखरी घंटा
दीवार टगी घड़ी से बजा
दीवार टगी घड़ी से बजा
अभी बस्ता रख , कंप्यूटर खोला
महसूस हुआ पीछे से कोई
काफ़ी को चलो बोला
घड़ी देखी, समय ठीक था
ग्यारह बजे काफ़ी ब्रेक था
पौन-एक घंटा काफ़ी पर
इधर-उधर का कुछ-कुछ बतियाया
थोडा जा ई-मेल पढी
तो टिफिन ले मेरा दोस्त आया
लंच तो करना ही है
एक घंटा हमने लंच का छोडा है
आख़िर पेट के लिए तो लडाई लड़ी है
आख़िर पेट के लिए तो लडाई लड़ी है
अब चलो बहुत हुआ
थोडा काम करे , सोचना शुरू हुआ
ना जाने लगता क्यों है
कुछ उबासी आई और
शरीर में सुस्ती सी छाई
चलो चार बजे है
एक चाय पिए और काम करे
एक दोस्त को हम ने फरमाया
वो दोस्त दो को और अपने साथ ले आया
पांच बजे वो चाय हुई और
डेस्क का रास्ता सब को याद आया
थोडा थोडा तेज हाथ चले
गरम चाय का जोश काम आया
जेब में फिर फ़ोन बजा
जिम अब तुम्हे है जाना
जोर जोर बजते अलार्म ने कहा
काम बहुत होता है
काम बहुत होता है
सेहत का ख्याल ज़रूरी है
छः बज चुके है
दफ्तर का समय खत्म हुआ
दीमाग थक चूका है
आज दफ्तर में बहुत काम हुआ ...
(समझदार को इशारा काफी )
--- अमित ११/१०/०७
10 comments:
just cannot imagine how Amit puts all incidents in such beautiful words ..
good show man Keep going ......
hum hamesha aapke saath hai....
I am really very much agree with Abhi...
Really each line is very much great....
Good Amit...
This is applicable to all our benchies. But kya karen, luckily ya unluckily i dont fall into that category.
But excellent boss, bahut hee achchi kavita hai , keep it up.
बहुत ही बढ़िया गद्य-काव्य…।
आपने जिन प्रश्नों को कुरेदा है… वह सच कहा जाए तो हमारे आधे से ज्यादा भारतीयों के नित्य कार्य हैं और हम कहते हैं कि विकास नहीं होता…।
बहुत सजीव चित्रण्।
:-)
bandhu mai jyada samajhdar nahin - par lagta hai aap bahut busy rahte ho??
kuch free time bhi nikala karo bhai... sirf kaam hi kaam... :-)
Ha ha .... good one ... although we smoke this in fun but this is the truth about the IT companies today ....
अच्छा गुजरा दिन!
वाह आप तो बहुत बिजी है अमित...सचमुच काव्य में सजीव चित्रण होने से मज़ा और बढ़ जाता है...
सुनीता(शानू)
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