Tuesday, December 21, 2010

शुरुआत ज़रूरी हैं...

लिख रहे है एक किताब, बात यह उनको बताई
सुन कर बात हमारी , उन्होंने फिर अचरज दिखाई...
रोज़मर्रा दौड़ धुप से , कैसे समय बचाते हैं,
कहाँ से सोचते है इतना सब, जो यह कर पाते हैं ...
की हमने भी कोशिश, करे कुछ हट कर ,
चंद दिन का जोश होता है, अलग फिर हट जाते है ...
सुन कर उनकी बाते, हलकी सी एक मुस्कान आई ,
समस्या है यह आम, बात हमने उनको बताई ...
बस एक प्रश्न है सभी समस्याओं का हल ,
बस ज़रूरत है दिमाग पर दे तनिक बल ...
घर की भी पहली मंजिल पर जब जाते है,
क्या सारी सीढियाँ एक डग में चढ़ जाते है ...
एक एक कदम जब हम अपना बढाते हैं
मंजिल पर तभी अपनी हम पहुँच पाते हैं ...
जाने क्यों पहला कदम बढ़ाने से हम डरते हैं ,
जब हो जाए शुरुआत , रास्ते खुद-ब-खुद निकलते हैं...
अच्छा था या .बुरा, छोटा या बड़ा, शुरुआत में येँ बे-मानी हैं,
सागर हो t चाहे पास अपने, मगर प्यास कुए ने ही बुझानी हैं...
जैसे बिना नियम के साधना अधूरी हैं,
करना हैं सफल होने को निरंतर प्रयास, यह वचन जरुरी हैं ....
(एक मित्र को एक शुरुआत करने के लिए प्रेरित करने को )

--- अमित २०/१२/१०

Tuesday, December 14, 2010

कमियाबी की कीमत ...

चाह है आज सबकी, हो कामियाब,
जिन्दगी हो हसीन, और जमाने में नाम...
ख्याल बे-शक़ ही यह बहुत अच्छा है,
करो मेहनत कामियाबी होगी आप के नाम...
याद मगर एक बात छोटी सी रखना,
कमियाबी, कीमत चुका कर ही आती है...
जितनी मिलती है कामियाबी
चीज़े कुछ उतना ही दूर जाती हैं ..
यह बस एक सौदा है,
थोडा समझ से आप कीजिये...
कामियाबी कितनी भी लीजिये,
कुछ ख़ास चीज़ें पर करीब रख लीजिये ...

(बस दिल में कुछ बे-चैनी थी, इस तरह बहार आ गई )
--- अमित १३/१२/१०

Monday, December 13, 2010

भैय्या जी ...

अपने हास्य लिखने के पीछे एक राज है
आज उस राज से पर्दा उठता हूँ ...
आओ चलिए आप को मैं
अपनी कविता की प्रेरणा से मिलाता हूँ...
अरे आप कहाँ कल्पनाओं में खो गये,
यह पहले पुरुष है जो सफल आदमी की प्रेरणा हो गये...
यों तो बड़ा बुलंद सा स्वर इनका कानो में आता है
और देखे जब इनको, सूखे पात सा बदन नज़र आता है ...
बदन के साथ मिजाज़ ने न ताल-मेल खाई है ,
सौ ग्राम के शरीर में , एक किलो अकड़ आई है ...
शक्ल से बहुत हंसमुख लगते है ,
पर आप खोले जरा मुख, किलस यें पड़ते हैं ...
कुछ शब्द बहुत विशिस्ट है,
संग इनके प्रयोग उनका न बिलकुल करिये...
प्रयोग से उनके , गरम तुरंत यें हो जाते है,
आग न लग जाए सूखे बदन में , हम जरा घबराते है...
दातं तो नहीं गिरे है इनके दूध के भी अभी ,
न हक़ ही लोग इनको , बुजुर्ग बताते है ...
क्या हुआ जो जीवन की सुई छ: को पार कर गई,
छ: मील की दौड़ जब बोलो लगा आते है ...
राजनीति के तो महा गुरु है ये,
जब भी आप मिलये दो मन्त्र सीख आइये ...
कैसे बनाई जाती है आग,
और कैसे बचाई जाती है अपनी, निकल वहां से भाग...
यह कला है अदभुत,
इनसे यह ज़रूर सीखिए ...
करने लगे हम इनके गुण गान तो करते ही जायंगे,
कहीं तो करना है विराम, तो यहीं पूर्ण विराम लगायेंगे...
वैसे हम दोस्तों में दूर से यें पहचाने जाते है,
और प्यार से "भैय्या जी " कहलाये जाते है ...
( सभी जानते है इनको !!! )
--- अमित १२ /१२ /१०

Sunday, December 12, 2010

एक नारी यह भी है ...

दुनिया किस और जा रही है आप को बताता हूँ

आइये , एक नारी से आप को मिलाता हूँ ...

बस से मैं ऑफिस जा रहा था,

आज दिन में नहीं, दोपहर में जा रहा था...

बस एक स्टॉप पर रुकी,

एक बीस-बाईस साल की युवती उसमे चढ़ी...

बगल में सीट हमारी खाली थी

वो उस सीट पर धरी...

शरीर पर उसके कपडे का बस किया नाम था,

कपड़ो से बड़ा बैग, लिया उसने अपने हाथ था...

बैठते ही , बैग उनका खुला

और बड़े बैग में के छोटा बैग मिला...

छोटे बैग से सबसे पहले शीशे साहब बहार आये,

देख अपना चेहरा युवती के अजीब से भाव आये...

फिर शरमाती हुई लिपस्टिक जी बाहर आईं

सूखे होठों की लाली फिर उसने बढ़ाई...

फेस पावडर की अबके बारी थी,

चेहरे में जान डालने की उसकी जम्मेदारी थी ...

इस के बाद एक और चीज़ निकल कर आई,

क्या थी वो, मुझ मुर्ख को समझ आई ...

अब सबसे ज़रूरी चीज़ बाहर आई,

इस बार वह युवती इत्र में नहाई ...

यह बहुत ज़रूरी था,

पानी से नहाना इतना ज़रूरी था...

देख कर यह सब, थोडा हमको हंसी आई

मगर इस किर्याकलाप में उसके जरा झेप आई...

सच में नारी सदा ही महान है, जो चाहे करती है

नई दुनिया का निर्माण वही करती है ...

(यह व्यंग सिर्फ उस युवती विशेष पर है, अन्यथा न लें ...)


--- अमित १०/१२/१०

Thursday, December 2, 2010

तोहफ़ा ...

दिन हमारा ख़ास रहा है

दे तुम को तोहफ़ा क्या

ख्याल दिल में बारबार रहा है...

सोचा तुम से ली जाए कुछ राय

ख्याल आया,

जो पूछ कर लाया, तो क्या तोहफ़ा लाया...

पास तुम गर हमारे होते

देते एक बोसा और

जुल्फों में कलियाँ पिरोते...

दूर हो तुम, दिल में जरा मलाल है,

क्या हुआ जो बीच अपने मीलों की दूरी है

देखे जो दिल में, तस्वीर तुम्हारी पूरी है...

सोचा कि, सोना-चाँदी का लाये गहना,

चंद दिन बाद तालो में है बस उनको रहना

सुना है, " हीरा है सदा के लिए !!!"

कीमत है कुछ उसकी,

कीमती मुस्कान उससे , तुम हो खुद लिए...

मिल जाए मुझे, शायद हजार चीज़े बाजार में

"जड़ ये चीज़े" रखती कुछ एहमियत, तुम्हारे प्यार में...

देना अब के है कुछ ऐसा तोहफा,

यादों में सुखद एहसास सा, जो रहे महका...

आदमी के "बोलो" में होती वोह बात

दूर हो कितने, रहते दिल के पास...

कितना प्यार तुम को करते है,

कविता में अपनी बतायेगे,

छोड़ के झूठे तोहफे, हाल अपने दिल का बताऊंगा

बना के गुलदस्ता अपने जज्बातों का

तोहफ़ा तुम को मैंने देने आऊँगा !!!


( शादी की तीसरी वर्षगांठ पर श्री-मति जी को स-सम्मान सप्रेम भेट )

--- अमित (०२/१२/२०१०)