Friday, August 6, 2010

नाओ दिस इज टू मच बाबा...

चलो आज, एक और को कमाते है
हाल इनके दिल का भी सुनाते है...
लिटल इण्डिया में एक विशेष जगह
पाई नहीं इन्होने, हथियाई है...
झुकी-झुकी शर्मीली आँखे,
छुपे-छुपे इशारे बहुत हैं करती...
होठों पे हलकी सी मुस्कान, पाई है
गहराई उसकी मगर, समझ कुछ को ही आई हैं...
राजनीति इनको बहुत प्यारी है,
कैसे पलटते है बातो से, यही तो फनकारी है...
यों तो साथ निकलते है सभी के
बजते ही घंटी फोन की, दर्शन न होते इनके...
संध्या सभा के भी कभी-कभी शौक रखते है
कुछ अन्दर जाने पर, रंग और निकलते है...
कभी कभी जोश में है बह जाते,
दिल से निकल जज़्बात जुबान आ जाते...
सीमाओं में तो रहना बहुत आता है
यदा कदा जब बहार हो जाते ,
सब जोर से हैं चिल्लाते,
" नाओ दिस इज टू मच बाबा" !!!
(लिटल इंडिया के एक सदस्य पर )
--- --- अमित ०५/०८/२०१०

1 comment:

संजय भास्‍कर said...

कई रंगों को समेटे एक खूबसूरत भाव दर्शाती बढ़िया कविता...बधाई