गये दिनों से चर्चा कुछ गर्म थी
दिखाई न दिए वो एक अरसे से
बात लोगो को हज़म कम थी !
सुगबुगाहट तो कानो तक उनके भी थी
दे कान हर एक आहट पर
आदत येँ जरा उनको न थी !
सही ही हैं
सूरज को नहीं ज़रूरत
करे मुनादी अपने आने की
सात घोड़ो की टापे
काफी हैं सोतो को जगाने !
छुपा रहे चाहे लाख बदली में
आना ही हैं बाहर
रौशनी अपनी उसको फैलाने !
हुई आज जो वापसी फिर
वही चमक हैं आँखों में
शब्दों के खिलाड़ी हैं
वही धार हैं बातों में ...
(on seeing yatish active after long time )