Saturday, January 23, 2010

जज्बातों का सैलाब सा आता...

कभी - कभी मेरी दिल में
जज्बातों का सैलाब सा आता,
ले सहारा कलम का,
बन शब्द, किसी कागज़ पर बह जाता,
कभी कभी मेरी दिल में
जज्बातों का सैलाब सा आता,
बैचैनी किसी से कैसे कहे
कहकहों कि भीड़ में, बस तन्हा सा रह जाता
कभी कभी मेरी दिल में
जज्बातों का सैलाब सा आता,
जम जाती जो यादों पर समय की धुल
तन्हाई में बन , अश्क की बुँदे
संग उसे येँ बहाले जाता
कभी कभी मेरी दिल में
जज्बातों का सैलाब सा आता,
--- अमित

1 comment:

Vaibhav said...

Bhai upar se nikal gaya.....