Wednesday, August 26, 2009

ऐसा बस यहीं होता...

देखा हमने एक नज़ारा
महाशय एक गरिया रहे थे
हाथ जोड़ थानेदार साहब
बस मिमिया रहे थे
उल्टा चोर कोतवाल को डांटे
ऐसा बस यहीं होता ।
कर जमा शेरो की फौज़
मुट्ठी भर गिदडो से घबरा रहे
ऐसा बस यहीं होता ।
छोटी ' इ ' की मात्रा
उलटी नही सीधी लगती
हिन्दी के गुरुओ को
अंग्रेज़ी का छात्र
देता यह ज्ञान
ऐसा बस यहीं होता ।
छोड़ के अपने संगी साथी
दूर वेबसाइट पर
बनाता नए रिश्ते इन्सान
ऐसा बस यहीं होता ।
---अमित (२/०९/०९)

Saturday, August 22, 2009

चरित्र चर्चा...

बडे एक शापिंग मॉल के

महंगे एक कैफे में

कर रहीं थी वो चुहल !

चर्चा बड़ी ही ख़ास थी

शर्मा जी के बेटी

जो दिखी वर्मा जी के बेटे के साथ !

एक ने कहा, " देखा "पर " निकल आए है !"

दूजी कहाँ चुप रहने वाली थी

अरे आप को नही होगा पता

"सुबह से शाम गुजरती साथ है "

आज कल तो बच्चो का चलन ही खराब है !

चर्चा चलती गई और कालिख पुतती गई !

घनन -घनन तभी मैडम का फ़ोन घंनाया

हंस खिलखिला कर दो बातें हुई

थोडी देर में मिलने का समय ठहराया !

किया सहेली को विदा अपनी

और घर फ़ोन लगाया

बेटा , पापा को बोलना

मम्मा को अर्जंट मीटिंग का कॉल आया,

आते घर शाम को देर होगी जरा !

थोडी देर गये पापा का भी फ़ोन आया था

फंस गये है वो मीटिंग में ये फरमाया था ,

मम्मा, बेचारी को कहाँ था पता

पापा की मीटिंग है उसी सहेली के साथ

चरित्र चर्चा चल रही थी जिसके साथ ...

--- अमित २२/०८/०९

Sunday, August 9, 2009

फर्क कहाँ हुआ ???

उतारे जो उसने
कपड़े अपने तन से
मिटाने को भूख
अपने पेट की और
बेचा अपना शरीर
नाम हुआ "वेश्या"...
उतार कपड़े अपने
जब चलती
वो बल खाके
आगे एक कैमरे के
मिलती ख्याति
होता नाम...
सौपती जब खुद को
करने नया अनुभव वो
बस चंद रातो को
फिर मिलता नाम
"वेश्या" नहीं अब
सम्मानित स्त्री का स्थान ...
क्या अलग दोनों ने किया???
कमाल है
फर्क फिर भी हुआ यहाँ...
(रास्ट्रीय स्तर की एक महिला खिलाडी के धन और काम के आभाव में वेश्या वर्ती में आने पर ...)
--- अमित ०९/०८/०९