Tuesday, July 29, 2008

संघर्ष...

प्रचार का ज़माना है
प्रयास चारो ओर पुर ज़ोर है
हमें भी प्रतिस्पर्धा में आना था
हम क्या किसी से कम है
बस यही सब को दिखाना था
नित नये प्रयास किये जाते थे
खेल हुआ या हुआ कुछ सहयोग
बढ़ चढ़ कर हमने भाग लिया
परिणाम चाहे कुछ रहा हो
हम हर ज़गह नज़र आए
दिनों दिन हम आगे बढ़ते जा रहे थे
और सब की नज़र में चढ़ते जा रहे थे
ज्ञान बाटने से बढ़ता है,
यही सोच ठान लिया ,
ज्ञान बाटकर, ज्ञान बढाने का काम
और दिया "संघर्ष" इस शुरुआत का नाम
देर ही सही
मगर महनेत रंग लाती है
"संघर्ष" को देखो,
नया सीखने की चहा साफ़ नज़र आती है ...
संघर्ष: It was a knowledge sharing event in Infosys by my team CCD...
--- अमित २९/०७/०८

Saturday, July 12, 2008

इतने तुम याद आओगे

चाहे जहाँ चाहो

चले तुम जाओ

कौन परवाह करता है

क्या तुम्हे लगता है

बस तुम से ही हम है

न होगे तुम तो

कहीं न हम होंगे

तुम्हे क्या पता

बस, अपने दम से है हम

याद न एक दिन आयगी

मजे में बसर जिन्दगी हो जायेगी

क्यों ये विश्वास

आज हमे धोखा दिए जाता है

रह रह साथ गुजारा

हर पल याद आता है

की जो तुम से बे-रुखियाँ

जला उनसे आज मन जाता है

याद तुम न आओगे

ये महज एक धोखा था

न पाकर तुम्हे करीब

दिल अपना रोता है

ये न सोचता था कभी

इतने तुम याद आओगे ...

--- अमित १२/०७/०८

Friday, July 11, 2008

आज़ादी ...

आज़ादी,
शब्द सुनते ही,
जोश की लहर दौड़ जाती
जोश तो जोश है
समय, बे-समय आ जाती
होश अगर इसमे खो जाए
यारो, शामत बडी आ जाती
हाल अपना भी कुछ ऐसा हुआ
श्रीमति जी जो मायके गई
१५ अगस्त सा हर दिन लगता
किस को अब पडी है
जो सुबह सुबह उठता
सुबह की सैर अब कहाँ होती है
९ बजे आँखे अब खुलती है
घर का काज कैसे, क्या होता है
नई आज़ादी में ख्याल कहाँ होता है
अखाडे में जा अब देही कौन तोडे
काम और करने को हमने रख छोडे
फल अब से कहाँ खाए जाते है
रोज पिज्जा - बर्गर मगाए जाते है
आख़िर, आज़ादी का जोश था
आगे क्या होगा किसे होश था
श्रीमती जी कब वापस आएँगी
जोश मैं ये भी भूल गये
गई शाम घर जब लौटे तो
देख श्रीमती जी को घर पर
हाथ से तोते छूट गये
देख हालत घर की और हमारी
वो गुर्राई जाती थी
सुनके दहाड़े उनकी,
जोश को भी धीरे धीरे होश आई जाती थी
हालत पर अपनी बडा तरस आता था
अब हमे ख्याल आता था
जब से हुई शादी, दूर हुई हम से आज़ादी ...
--- अमित ११/०७/08