अक्सर मैं कुछ लोगो की
बातो पर बस मुस्काता हूँ
देख कर उनकी सोच समझ
ख़ुद सोच में पड़ जाता हूँ
ये कर देंगे, वो कर देंगे
ये ग़लत है, ये नही होने देंगे
नारे वो सब लगाते है
काम नही कुछ और उन्हें
बस बातों की वो खाते है
और बातों में ही वो जीते है
आए जब मौका कुछ करने का
दूर नज़र न ये आते है
कहना तब इन का होता है
हमने तो बस सोचा था
सोच से कहाँ कुछ होता है
हम तो अकेले ही है
अकेले जन से क्या होता है
अब मूढ़ों को कौन बताए
सोच से ही सब होता है
एक अकेला सोच अपनी बदले
देख उसे दूजा फिर सोचे
देख बदलता फ़िर दूजे को
तीसरा को लगता वो भी सोचे
सोच में वो ताकत
जब बढ़ कर रूप अपना लेले
सिहासन ख़ुद हिलने लगता है
और स्मिर्धि का फूल
हर तरफ़ खिलने लगता है ....
--- अमित २५/०४/०७
3 comments:
thanks amit
i am humbled with your affection
with lots of love and good wishes
rachna
अमित तुम्हारे विचार बहुत अच्छे है बस उन्हे किस तरह शब्दों में ढालना है तुम्हे सीखना है...वैसे निपुण कोई नही मै भी नही हूँ...फ़िर भी कहना चाहती हूँ कुछ ऎसा लिखो कि कविता खिल-खिल जाये...जो पहले लिखा करते थे उस लेखन में भाव बहुत होते थे मगर आज जो लिखा है बुरा मत मानना कविता नही लग रहा...मै चाहती हूँ किसी को भी आधार मानो मगर खुद की काबिलीयत को मत भूलो...
सुनीता
@ Rachna--> धन्यवाद !!!
@ Sunita--> धन्यवाद सुनीता जी ... सुझाव अमल मे लाने की पूरी कोशिश करूँगा !
मगर मैं कुछ सोच समझ कर या कुछ बिना कर नही लिखता और न और कारण के लिखता हूँ !!! थोड़ा Introvert हूँ तो बोलने की जगह लिख देता हूँ .... अब वो कुछ भी बने पता नही...
चूँकि आप मेरे से निपूर्ण है सो आप को पता चल जाता है की गलती कहाँ है ...
आगे से और अच्छी कोशिश होगी ...
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