उसने जन्म दिया एक बच्ची कों
और छोड दिया रेल की पटरी पर मरने कों
और छोड दिया रेल की पटरी पर मरने कों
लोगो ने कहा, लड़की थी इस लिए छोड दिया
तो कुछ ने कहा , नाजायज औलाद थी
औलाद भी नाजायज होती है , पता नही था
तो कुछ ने कहा , नाजायज औलाद थी
औलाद भी नाजायज होती है , पता नही था
कुदरत ने करिश्मा किया
और बच्ची कों जीवन दान दिया
किसी ने जा उसे अस्तपताल ने भर्ती किया
खुशियाँ मनाई गई , इश्वेर को धन्यवाद दिया
खुशियाँ मनाई गई , इश्वेर को धन्यवाद दिया
कुछ ने उसके माँ - बाप बुरा भला भी कहा
ये खबरें है , कहाँ छुप पाती है
ये तो जंगल की आग सी फ़ैल जाती है
ये तो जंगल की आग सी फ़ैल जाती है
कुछ लोग आज कतार में है
कुछ बे-औलाद है जो उसे पाने की आस में है
कोई उन से भी तो पूछे,
औलाद के बिना जिन्दगी कैसी हो जाती है
औलाद के बिना जिन्दगी कैसी हो जाती है
बच्चा तो कच्ची माटी है ,जैसा ढालो ढल जाती है
बेटा हो या बेटी सही परवरिश हो तो
सब के काम आती है ...
--- अमित १५/११/०७
4 comments:
"औलाद के बिना जिन्दगी कैसी हो जाती है
बच्चा तो कच्ची माटी है ,जैसा ढालो ढल जाती है
बेटा हो या बेटी सही परवरिश हो तो
सब के काम आती है ... "
एक लेखक होने के नाते मैं याद दिला दूं कि नियमित पाठक के लिये किसी भी कृति का अंत बहुत महत्वपूर्ण होता है. सकारात्मक अंत पाठकों की संख्या को बढाता है. इस कविता में आपने एक बहुत ही सकारत्मक अंत दिया है. बहुत अच्छा.
बधाईयां -- शास्त्री
हिन्दी ही हिन्दुस्तान को एक सूत्र में पिरो सकती है.
इस काम के लिये मेरा और आपका योगदान कितना है?
बहुत बढिया रचना है।बधाई स्वीकारें।
good to read your poems.
प्रिय बन्धु
अब नया कब लिख रहें आप??
जब मूड हो तो कुछ शब्द इधर भी लिख लेना ..
जल्दी नहीं हैं पर इंतज़ार जरूर है..
all the best.
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