Thursday, October 7, 2010

एक सुन्दर कविता की दरकार है मुझको...

एक सुन्दर कविता की दरकार है मुझको
मैं ढून्ढ रहा हूँ, हर दम उसको
रूप की तुम्हारे की खूब तारीफ़ मैंने
आशिक के उस चोले से बहार आना है मुझको
एक सुन्दर कविता की दरकार है मुझको
चर्चे खूब किये हसिनाओ की बेवफाई के
शब्दों से अपने वफा अब करनी है मुझको
एक सुन्दर कविता की दरकार है मुझको
गुदगुदाया है बहुत यारो को अपने
होना संजीदा अब ज़रूरी है मुझको
एक सुन्दर कविता की दरकार है मुझको
लिखा जाने क्या क्या मैंने
सार्थक सा कुछ अब लिखना है मुझको
एक सुन्दर कविता की दरकार है मुझको
मैं ढून्ढ रहा हूँ, हर दम उसको
आज खाली गया तो क्या ,
कल न तो परसों, वो मिलेगी मुझको ...

--- अमित ०५/१०/२०१०

6 comments:

Udan Tashtari said...

अब क्या दरकार है..बन तो गई सुन्दर कविता...

और क्या प्राण ले लोगे कविता के. :)

gyaneshwaari singh said...

अच्छा लगा पढना ..कुछ ख्याल चले आये

सुंदर कविता की दरकार
क्या में दे दू इश्तिहार ?
शब्दों से हो जिसमे प्यार
भावो के हो रंग हज़ार
हर पंक्ति में बहे बयार
भाव कि ऐसी भरो बहार

Asha Joglekar said...

बन तो गई कविता अब सुंदर है या नही जिसे भेट करना है उसी से पूछ लें ।

संजय भास्‍कर said...

आपकी यह प्रस्तुति बहुत बहुत पसंद आयी ! आभार एवं शुभकामनाएं !

संजय भास्‍कर said...

बहुत गजब की रचना, सुंदर अति सुंदर.

Aloka said...

hi it is nice to you bust of luck aloka