सही ही कहा हैं कहने वाले ने
कंही नही मिलता हैं जब सहारा
कागज़ और कलम ही होते हैं
डूबते इन्सान का सहारा
लगता हैं मुझे, में हु अधुरा
मंजिल पर आकर ढूंड रहा किनारा
करता में ज्यों ज्यों कोशिश
बढ़ता ही जाता येँ अँधेरा
समय के साथ सोच संभलती हैं
बदला हैं अपने आपको भी
बदली अपनी राहें और, थामा हाथ तुम्हारा
लगता था ...
बन जायेंगे एक दूजे का सहारा
समय के साथ सोच बदलती हैं
तुम भी कहा बच सकते थे
लड़खड़ाने फिर हम लगे
चाह था खुशहालियां होंगी
पर रंग अपना समय ने फिर दिखलाया
बढ़ता जा रहा अँधेरा
ज्यों ज्यों हाथ मेने बढ़ाया
......
अमित १३/०१/२०१०
2 comments:
कागज कलम बहुत बढ़िया सहारा होते हैं हर हाल में..बेहतरीन रचना!!
आज कल कागज कलम ही सबसे बड़ा सहारा है हमारा भी
बहुत बढ़िया
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